कुछ शेर : ३


उल्फ़त भी अजब शै है जो दर्द वही दरमाँ
पानी पे नही गिरता जलता हुआ परवाना

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जो सीने में दिल है तो बारे मुहब्बत
उठे या न उठे , उठाना पड़ेगा

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आदत के बाद दर्द भी देने लगा है लुत्फ़
हंस हंस के आह आह किये जा रहा हूँ मैं

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आदत के बाद दर्द भी देने लगा है लुत्फ़
हंस हंस के आह आह किये जा रहा हूँ मैं

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दो तुंद हवाओं पर बुनियाद है तूफां की
या तुम न हसीं होते या मैं न जवां होता

- आरजू लखनवी



मुझे आता है रोना ऐसी तन्हाई पे ऐ “ताबाँ”
न यार अपना,न दिल अपना,न तन अपना,न जाँ अपनी

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“ताबाँ” किसी से दर्द हमारा छुपा नहीं
आती है बूए दर्द हमारे सुख़न के बीच

- मीर अब्दुलहई



जब से उसने शहर को छोड़ा , हर रास्ता सुनसान हुआ
अपना क्या है सारे शहर का, इक जैसा नुकसान हुआ

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मासूमियत का ये अंदाज़ भी मेरे सनम का है मोहसिन
उसको तसवीर में भी देखूं तो पलकें झुका लेता है

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उसका मिलना ही मुकद्दर में नहीं था
वरना क्या क्या नहीं खोया उसे पाने के लिये

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नादानी की हद है, ज़रा देख तो उसे मोहसिन
मुझे खो कर मेरे जैसा ढूँढ रहा है

-मोहसिन

आज उनका ख़त आया चाँद के लिफ़ाफ़े में
रात के अँधेरे में उंगलियां चमकती हैं

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दाग़ दुनिया ने दिये, ज़ख्म ज़माने से मिले
हम को ये तोहफ़े तुम्हें दोस्त बनाने से मिले

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गुल से लिपटी हुई तितली को गिराकर देखो
आंधियों तुमने दरख्तों को गिराया होगा

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कैसे माने के उन्हें भूल गया तु ऐ कैफ
उन के खत आज हमें तेरे सरहाने से मिले


-कैफ भोपाली

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