Bulleya- Ae Dil Hai Mushkil (2016)

फिल्म- ऐ दिल है मुश्किल (2016)
गाना- बुल्लैया
संगीतकार- प्रीतम
गीतकार- अमिताभ भट्टाचार्य 
गायक- अमित मिश्रा, शिल्पा राव 



मेरी रूह का परिंदा फड़फडाये
लेकिन सुकून का जज़ीरा मिल न पाए
वे की करां.. वे की करां..
इक बार को तैजल्ली तो दिखा दे
झूठी सही मगर तसल्ली तो दिला दे
वे की करां.. वे की करां..
रांझण दे यार बुल्लेया
सुन ले  पुकार बुल्लेया
तू ही तो यार बुल्लेया
मुर्शिद मेरा, मुर्शिद मेरा
तेरा मुकाम कमली
सरहद के पार बुल्लेया
परवरदिगार बुल्लेया
हाफ़िज़ तेरा, मुर्शिद मेरा
रांझण दे यार बुल्लेया
सुन ले  पुकार बुल्लेया
तू ही तो यार बुल्लेया
मुर्शिद मेरामुर्शिद मेरा
तेरा मुकाम कमली
सरहद के पार बुल्लेया
परवरदिगार बुल्लेया
हाफ़िज़ तेरामुर्शिद मेरा

मैं काबुल से लिपटी
तितली की तरह मुहाजिर हूँ
एक पल को ठहरूं
पल में उड़ जाऊँ 
वे मैं तां हूँ पगडंडी लबदी ऐ जो राह जन्नत दी
तू मुड़े जहाँ मैं साथ मुड़ जाऊँ 
तेरे कारवां में शामिल होना चाहूँ
कमियाँ तराश के मैं क़ाबिल होना चाहूँ
वे की करां.. वे की करां..
रांझण दे यार बुल्लेया
सुन ले  पुकार बुल्लेया
तू ही तो यार बुल्लेया
मुर्शिद मेरामुर्शिद मेरा
तेरा मुकाम कमली
सरहद के पार बुल्लेया
परवरदिगार बुल्लेया
हाफ़िज़ तेरामुर्शिद मेरा
रांझणा  वे.. रांझणा  वे..
जिस दिन से आशना से दो अजनबी हुए  हैं
तन्हाइयों  के लम्हें सब मुल्तबी हुए हैं
क्यूँ आज मैं मोहब्बत
फिर एक बार करना चाहूँ हाँ..
ये दिल तो ढूंढता है इनकार के बहाने
लेकिन ये जिस्म कोई पाबंदियाँ  ना माने
मिलके तुझे बगावत
ख़ुद से ही यार करना चाहूँ
मुझमें अगन है बाकी आजमा ले
ले कर रही हूँ ख़ुद को मैं तेरे हवाले
वे रांझणा... वे रांझणा...
रांझण दे यार बुल्लेया
सुन ले  पुकार बुल्लेया
तू ही तो यार बुल्लेया
मुर्शिद मेरामुर्शिद मेरा
तेरा मुकाम कमली
सरहद के पार बुल्लेया
परवरदिगार बुल्लेया
हाफ़िज़ तेरामुर्शिद मेरा
मुर्शिद मेरा मुर्शिद मेरा..
रांझण दे यार बुल्लेया
सुन ले  पुकार बुल्लेया
तू ही तो यार बुल्लेया
मुर्शिद मेरामुर्शिद मेरा
तेरा मुकाम कमली
सरहद के पार बुल्लेया
परवरदिगार बुल्लेया
हाफ़िज़ तेरामुर्शिद मेरा
मुर्शिद मेरा, मुर्शिद मेरा..
मुर्शिद मेरा, मुर्शिद मेरा..


ऐ दिल है मुश्किल (2016)

फिल्म- ऐ दिल है मुश्किल (2016)
गाना- ऐ दिल है मुश्किल (टाइटल ट्रैक)
संगीतकार- प्रीतम
गीतकार- अमिताभ भट्टाचार्य
गायक- अरिजीत सिंह


तू सफर मेरा
है तू ही मेरी मंज़िल
तेरे बिना गुज़ारा
ऐ दिल है मुश्किल
तू मेरा खुदा
तू ही दुआ में शामिल
तेरे बिना गुज़ारा
ऐ दिल है मुश्किल
मुझे आजमाती है तेरी कमी
मेरी हर कमी को है तू लाज़मी
जूनून है मेरा
बनूँ मैं तेरे क़ाबिल
तेरे बिना गुज़ारा
ऐ दिल है मुश्किल
ये रूह भी मेरी
ये जिस्म भी मेरा
उतना मेरा नहीं
जितना हुआ तेरा
तूने दिया है जो
वो दर्द ही सही
तुझसे मिला है तो
इनाम है मेरा
मेरा आसमां ढूंढें तेरी ज़मीं
मेरी हर कमी को है तू लाज़मी
ज़मीं पे ना सही
तो आसमां में आ मिल
तेरे बिना गुज़ारा
ऐ दिल है मुश्किल
माना कि तेरी मौजूदगी से
ये जिंदगानी महरूम है
जीने का कोई दूजा तरीका
ना मेरे दिल को मालूम है
तुझको मैं कितनी शिद्दत से चाहूँ
चाहे तो रहना तू बेखबर
मोहताज मंजिल का तो नहीं है
ये एक तरफ़ा मेरा सफ़र
सफ़र खूबसूरत है मंजिल से भी
मेरी हर कमी को है तू लाज़मी

अधूरा होके भी
है इश्क़ मेरा कामिल
तेरे बिना गुज़ारा
ऐ दिल है मुश्किल

Rudaali (1993)

फिल्म- रुदाली (1993)
गाना- दिल हूम हूम करे
संगीतकार- भूपेन हज़ारिका 
गीतकार- गुलज़ार 
गायक- लता मंगेशकर, भूपेन हजारिका 




दिल हूम हूम करे.. घबराए
घन धम धम करे.. डर जाए
इक बूँद कभी पानी की
मोरी अंखियों से बरसाए
दिल हूम हूम करे.. घबराए
तेरी झोरी डारूं.. सब सूखे पात जो आए
तेरा छूंआ लागे.. मेरी सुखी डार हरियाए
दिल हूम हूम करे.. घबराए

जिस तन को छुआ तुने.. उस तन को छुपाऊँ
जिस मन को लगे नैना.. वो किसको दिखाऊँ
ओ मोरे चन्द्रमा.. तेरी चांदनी अंग जलाए
ऊंची तोर अटारी.. मैंने पंख लिए कटवाए

दिल हूम हूम करे.. घबराए
घन धम धम करे.. डर जाए
इक बूँद कभी पानी की
मोरी अंखियों से बरसाए

दिल हूम हूम करे.. घबराए..

Ijazat

फिल्म: इजाज़त
गाना: मेरा कुछ सामान
संगीतकार: आर.डी बर्मन
गीतकार: गुलज़ार
गायिका: आशा भोंसले


आ आ आ...
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
ओ सावन के कुछ भीगे भीगे दिन रखे हैं
और मेरे एक खत में लिपटी रात पड़ी है
वो रात बुझा दो, मेरा वो सामान लौटा दो 
वो रात बुझा दोमेरा वो सामान लौटा दो 
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
ओ सावन के कुछ भीगे भीगे दिन रखे हैं
और मेरे एक खत में लिपटी रात पड़ी है
वो रात बुझा दोमेरा वो सामान लौटा दो 


पतझड़ है कुछ ... है ना ?
ओ ! पतझड़ में कुछ पत्तों के गिरने की आहट
कानों में एक बार पहन के लौट आई थी
पतझड़ की वो शाख अभी तक कांप रही है
वो शाख गिरा दो, मेरा वो सामान लौटा दो 
वो शाख गिरा दोमेरा वो सामान लौटा दो

एक अकेली छतरी में जब आधे आधे भीग रहे थे
एक अकेली छतरी में जब आधे आधे भीग रहे थे
आधे सूखे आधे गीले, सूखा तो मैं ले आयी थी
गीला मन शायद बिस्तर के पास पड़ा हो 
वो भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो

एक सौ सोलह चाँद की रातें एक तुम्हारे कांधे का तिल
एक सौ सोलह चाँद की रातें एक तुम्हारे कांधे का तिल 
गीली मेंहदी की खुशबू, झूठ-मूठ के शिकवे कुछ
झूठ-मूठ के वादे भी सब याद करा दूँ
सब भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो 
सब भिजवा दोमेरा वो सामान लौटा दो 

एक इजाज़त दे दो बस, जब इसको दफ़नाऊँगी
मैं भी वहीं सो जाऊंगी

मैं भी वहीं सो जाऊंगी

पाँच मैथली गीत दुर्गा माँ पर

दुर्गा पूजा के अवसर पर आज कुछ मैथली गीत देखते हैं. इनके रचनाकार का नाम मालूम नहीं चल पाया है. लेकिन ये गीत काफी  प्रचलित हैं.



----- १ ----- 

एत्तेक बात आय दुर्गा बोलैय
तब जवाब आय मालीन दै छै
सुन गे देवी देवी असावरि
तोरा कहै छी दिल के वार्ता
मैया दुर्गा दरशन दइये
जहि कारणमे रटना रटै छै
स्वामी दरशन तोरा करेबौ
चल चल मलीनियाँ मानिकदहमे
मानिकदहमे देवता अऔतै
जहदी बागमे फूल तोड़ै छै
मानिकदह स्नान देवता करै छै
टीक धारै टीकुलिया फड़ल
तब महिसौथा देवता पूजा की करै छै गै

----- २ ----- 

तब जवाब दुर्गा दै छै
सुनऽ गे बेटी मलीनियाँ सुनि ले
चुहरा गै नौकरी खारिज भऽ गेल
चुहरा बदला गै नौकर छेलै
चन्द्रा कोहबर पहरा छेलै
देवता पारमे चोरी भऽ गेल
तहि कारणमे राजा कुलेसर
जेल घरमे स्वामी के देलकौ
हाजत घरमे नरूपिया देवता कनैय गै

----- ३ ----- 

हौ तब वचनियाँ दुर्गा कहैय
सीरी सलहेस नरूपिया खामिन के
सुन ले देवता देवता नरूपिया
दिल के वार्त्ता तोरा कहै छी
हमर वचनियाँ नरूपिया मानियौ
सब क बिअहबा महिसौथा कयलऽ
एकेटा कुमार तोरा भगीना रहलऽ
जनम उलहिनियाँ तोरा बहिनियाँ दै छह
केना बिअहबा करिकन्हा के होयतऽ हौ
केना के बिअहबा करिकन्हा के होयतऽ हौ
एमरी लगन बेटा चलि ने गेलै
एमरी बिआह करिकन्हा करा दियौ रौ



-- ४ -- 

हौ एत्तेक वचनियाँ नरूपिया सोचै छै
आ जेल के घरमे दुर्गा जुमलै
अँचरा के खूंटमे चीट्ठी बन्हैय
तबेमे जबाब नरूपिया दै छै
गै सुख के चीट्ठी कोहबर दीहै
आ दुख के चीठी बौआ मोती के दीहे
भाइ सहोदर जखनी बुझतै
बान्ह खोला हमर लऽ जयतै
आ बन्हवा खोलबाक हमरा बौआ लऽ जयतै
हौ चौठीया लऽकऽ दुर्गा भगैय
जखनी दुर्गा हौ कोशिका लग जुमि गेल
सुखले नदीयामे हौ जल भरलै
आ छुरी फनकैय कोशिका लग मे
तखनी मैया दुर्गा कहैय
सुनिलय गै कोशिका दिल के वार्त्ता
जेहने देवता तू कहबै छै
तेहने देवता दुर्गा मैया
सुखले नदीया पार उतारि दे
सतयुग छीयै गै कलयुग अऔतै
तोरे गे नाम दुनियाँमे चलतौ
हमरा पार कोशिका जल्दी तू उतारि दियौ गै

-- ५ --

हौ तब जवाब डाकू चुहरा दै छै
सुनऽ सुनऽ गै मैया दुर्गा
गै जातिमे पंछी कौआ लगै छै
बर चटपटिआ लौआ लगै छै
कुटनीमे तू दुर्गा दुचारैन छीही
घर-घर झगड़ा दुर्गा लगबै छै
गै जाबे नै सत मैया दुर्गा करबै
ताबे नै दुःख वरणन हम कहबै
हमरा संगमे सत मैया कऽ दियौ यै
हौ सत दुर्गा मंदिरमे कऽ देल
तब दुःख वरनन चुहरा कहैय
सुनि लय गे देवी देवी असामरि
नौकरी जे केलीयै राज पकरिया
बारह बरिस मैया नौकरी रहली
बिना कसूरमे नौकरी छोड़ौलकै
कहियो ने घी के घैइल हरेलीयै
नीमक खेलीयै सैरियत देलीयै
कहियो सुरति चन्द्रा के नै देखलीये
बहिन समान चन्द्रा मानली
बिना कसूरमे मैया नौकरी हमरा छोड़ा देलकै गै
चलहु के बेरमे बेइमनमा दरमाहा
किया रोकि लेलकौऽ यैऽऽ
आ एको पाइ दरमाहा चुहरा
के मैया नै देलकै गै
तहि कारण हम सत करौलीयै
आ केना के जेबै मोकमागढ़मे
केना के मुँह मोकमा देखेबै
गै राज पकरिया गै चोरी करबै
तहि कारण मैया सत करौलीयै
चोरी के रंग हम नइ जनै छी
चोरी समान मैया हमरा तू दऽ दियौ गै

दुर्गा जी के दर्शन - नज़ीर अकबराबादी



मन बास न कहिये क्यों कर जी है काशी नगरी बरसन क
है तीरथ ज्ञानी ध्यानी का हर पंडित और धुन सरसन की
जो बसने हारे दूर के हैं यह भूमि है उन मन तरसन की
उस देवी देवनी नटखट के है चाह चरन के परसन की
परसंद बहुत मन होते हैं यह रीत रची है हरसन की
तारीफ़ कहूं मैं क्या क्या कुछ, अब दुर्गा जी के दरसन की

उस मंडल ऊंचे गुम्मट में जो देवी आप विराजत हैं
तन अवरन ऐसे झलकत हैं जो देख चन्द्रमा लाजत है
धुन पूजन घंटन की ऐसी नित नौबत मानों बाजत हैं
उस सुन्दर मूरत देवी का जो बरनन हो सब छाजत हैं
परसंद बहुत मन होते हैं यह रीत रची है हरसन की
तारीफ़ कहूं मैं क्या क्या कुछ, अब दुर्गा जी के दरसन की

जो मेहेर सुने उस देवी की, वह दूर दिसा से धावत है
जो ध्यान लगाकर आवत है, सब वा की आस पुजावत है
जब किरपा वा की होवत है, सब वा के दरसन पावत है
मुख देखत ही वा मूरति का, तन मन से सीसस नवावत है
परसंद बहुत मन होते हैं यह रीत रची है हरसन की
तारीफ़ कहूं मैं क्या क्या कुछ, अब दुर्गा जी के दरसन की

जो नेमी हैं वा मूरति के, वह उनकी बात सुधारिन है
सुख चैन जो बातें मांगत हैं, वह उनकी चिन्ता हारिन हैं
हर ज्ञानी वा की सरनन है, हर ध्यानी साधु उधारिन हैं
जो सेवक हैं वा मूरति के, वह उनके काज संवारिन है
परसंद बहुत मन होते हैं यह रीत रची है हरसन की
तारीफ़ कहूं मैं क्या क्या कुछ, अब दुर्गा जी के दरसन की

जब होली पाछे उस जगह, दिन आकर मंगल होता है
हर चार तरफ़ उस देवल में, अंबोह समंगल होता है
टुक देखो जिधर भी आंख उठा, नर नारी का दल होता है
हर मन में मंगल होता है, आनन्द बिरछ फल होता है
परसंद बहुत मन होते हैं यह रीत रची है हरसन की
तारीफ़ कहूं मैं क्या क्या कुछ, अब दुर्गा जी के दरसन की

जो बाग़ लगे हैं मन्दिर तक, वह लोगों से सब भरते हैं
वह चुहलें होती हैं जितनी, सब मन के रंज बिसरते हैं
कुछ बैठे हैं ख़ुश वक्ती से, दिल ऐशो तरब पर धरते हैं
कुछ देख बहारे खूवां की, साथ उनके सैरें करते हैं
परसंद बहुत मन होते हैं यह रीत रची है हरसन की
तारीफ़ कहूं मैं क्या क्या कुछ, अब दुर्गा जी के दरसन की

जो चीजे़ं मेलों बिकती हैं, सब उस जा आन झमकती हैं
पोशाकें जिनकी ज़र्री हैं, वह तन पर खूब झलकती हैं
महबूबों से भी हुस्नों की, हर आन निगाहें तकती हैं
लूं नाम ‘नज़ीर’ अब किस-किस का, जो खूबियां आन झमकती हैं
परसंद बहुत मन होते हैं यह रीत रची है हरसन की
तारीफ़ कहूं मैं क्या क्या कुछ, अब दुर्गा जी के दरसन की

कृष्ण की चेतावनी-रामधारी सिंह दिनकर



वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।

मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये।

‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!

दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।

हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।

‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल वक्षस्थल विशाल,
भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,
मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।
दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,
सब हैं मेरे मुख के अन्दर।

‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,
मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।
शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।

‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,
शत कोटि विष्णु जलपति, धनेश,
शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,
शत कोटि दण्डधर लोकपाल।
जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।

‘भूलोक, अतल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।

‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।

‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,
छा जाता चारों ओर मरण।

‘बाँधने मुझे तो आया है,
जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनन्त गगन।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है?

‘हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।

‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा,
विकराल काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
फिर कभी नहीं जैसा होगा।

‘भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
आखिर तू भूशायी होगा,
हिंसा का पर, दायी होगा।’

थी सभा सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या थे बेहोश पड़े।
केवल दो नर ना अघाते थे,
धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित,
निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’!🚩

दिल तो दिलदारों ने लूटा - गोपाल सिंह नेपाली

बदनाम रहे बटमार मगर,
घर तो रखवालों ने लूटा
मेरी दुल्‍हन सी रातों को,
नौलाख सितारों ने लूटा
दो दिन के रैन-बसेरे में,
हर चीज़ चुरायी जाती है
दीपक तो जलता रहता है,
पर रात पराई होती है
गलियों से नैन चुरा लाई,
तस्‍वीर किसी के मुखड़े की
रह गये खुले भर रात नयन,
दिल तो दिलदारों ने लूटा

जुगनू से तारे बड़े लगे,
तारों से सुंदर चाँद लगा
धरती पर जो देखा प्‍यारे
चल रहे चाँद हर नज़र बचा
उड़ रही हवा के साथ नज़र,
दर-से-दर, खिड़की से खिड़की
प्‍यारे मन को रंग बदल-बदल,
रंगीन इशारों ने लूटा

हर शाम गगन में चिपका दी,
तारों के अधरों की पाती
किसने लिख दी, किसको लिख दी,
देखी तो, कही नहीं जाती
कहते तो हैं ये किस्‍मत है,
धरती पर रहने वालों की
पर मेरी किस्‍मत को तो
इन ठंडे अंगारों ने लूटा

जग में दो ही जने मिले,
इनमें रूपयों का नाता है
जाती है किस्‍मत बैठ जहाँ
खोटा सिक्‍का चल जाता है
संगीत छिड़ा है सिक्‍कों का,
फिर मीठी नींद नसीब कहाँ
नींदें तो लूटीं रूपयों ने,
सपना झंकारों ने लूटा

वन में रोने वाला पक्षी
घर लौट शाम को आता है
जग से जानेवाला पक्षी
घर लौट नहीं पर पाता है
ससुराल चली जब डोली तो
बारात दुआरे तक आई
नैहर को लौटी डोली तो,
बेदर्द कहारों ने लूटा ।

अकबर इल्लाहबदी के तीन ग़ज़ल


ग़ज़ल - हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
गायक - गुलाम अली

हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है

ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़ की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है

उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना
मक़सूद है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है

वां दिल में कि दो सदमे,यां जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है

हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही से
हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है

सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है




ग़ज़ल - दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
गायक - के.एल.सहगल 
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ, ख़रीददार नहीं हूँ

ज़िन्दा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी
हर चंद कि हूँ होश में, होशियार नहीं हूँ

इस ख़ाना-ए-हस्त से गुज़र जाऊँगा बेलौस
साया हूँ फ़क़्त, नक़्श बेदीवार नहीं हूँ

अफ़सुर्दा हूँ इबारत से, दवा की नहीं हाजित
गम़ का मुझे ये जो’फ़ है, बीमार नहीं हूँ

वो गुल हूँ ख़िज़ां ने जिसे बरबाद किया है
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ

यारब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से
मैं उस की इनायत का तलबगार नहीं हूँ

अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़ की कुछ हद नहीं “अकबर”
क़ाफ़िर के मुक़ाबिल में भी दींदार नहीं हूँ



गजल - वो हवा न रही वो चमन न रहा 
गायक - गुलामी अली 

वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे
वो फ़लक न रहा वो समाँ न रहा वो मकाँ न रहे वो मकीं न रहे

वो गुलों में गुलों की सी बू न रही वो अज़ीज़ों में लुत्फ़ की ख़ू न रही
वो हसीनों में रंग-ए-वफ़ा न रहा कहें और की क्या वो हमीं न रहे

न वो आन रही न उमंग रही न वो रिंदी ओ ज़ोह्द की जंग रही
सू-ए-क़िबला निगाहों के रुख़ न रहे और दैर पे नक़्श-ए-जबीं न रहे

न वो जाम रहे न वो मस्त रहे न फ़िदाई-ए-अहद-ए-अलस्त रहे
वो तरीक़ा-ए-कार-ए-जहाँ न रहा वो मशाग़िल-ए-रौनक़-ए-दीं न रहे

हमें लाख ज़माना लुभाए तो क्या नए रंग जो चर्ख़ दिखाए तो क्या
ये मुहाल है अहल-ए-वफ़ा कि लिए ग़म-ए-मिल्लत ओ उल्फ़त-ए-दीं न रहे

तेरे कूचा-ए-ज़ुल्फ़ में दिल है मेरा अब उसे मैं समझता हूँ दाम-ए-बला
ये अजीब सितम है अजीब जफ़ा कि यहाँ न रहे तो कहीं न रहे

ये तुम्हारे ही दम से है बज़्म-ए-तरब अभी जाओ न तुम न करो ये ग़ज़ब
कोई बैठ के लुत्फ़ उठाएगा क्या कि जो रौनक़-ए-बज़्म तुम्हीं न रहे

जो थीं चश्म-ए-फ़लक की भी नूर-ए-नज़र वही जिन पे निसार थे शम्स ओ क़मर
सो अब ऐसी मिटी हैं वो अंजुमनें कि निशान भी उन के कहीं न रहे

वही सूरतें रह गईं पेश-ए-नज़र जो ज़माने को फेरें इधर से उधर
मगर ऐसे जमाल-ए-जहाँ-आरा जो थे रौनक़-ए-रू-ए-ज़मीं न रहे

ग़म ओ रंज में ‘अकबर’ अगर है घिरा तो समझ ले कि रंज को भी है फ़ना
किसी शय को नहीं है जहाँ में बक़ा वो ज़्यादा मलूल ओ हज़ीं न रहे