स्‍वतंत्रता का दीपक - गोपाल सिंह नेपाली

घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो,
आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है ।

शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ, यह स्‍वतंत्रतादिया,
रुक रही न नाव हो, जोर का बहाव हो,
आज गंगधार पर यह दिया बुझे नहीं!
यह स्‍वदेश का दिया हुआ प्राण के समान है!

यह अतीत कल्‍पना, यह विनीत प्रार्थना,
यह पुनीत भवना, यह अनंत साधना,
शांति हो, अशांति हो, युद्ध, संधि, क्रांति हो,
तीर पर, कछार पर, यह दिया बुझे नहीं!
देश पर, समाज पर, ज्‍योति का वितान है!

तीन चार फूल है, आस पास धूल है,
बाँस है, फूल है, घास के दुकूल है,
वायु भी हिलोर से, फूँक दे, झकोर दे,
कब्र पर, मजार पर, यह दिया बुझे नहीं!
यह किसी शहीद का पुण्‍य प्राणदान है!

झूम झूम बदलियाँ, चुम चुम बिजलियाँ
आँधियाँ उठा रही, हलचले मचा रही!
लड़ रहा स्‍वदेश हो, शांति का न लेश हो
क्षुद्र जीत हार पर, यह दिया बुझे नहीं!
यह स्‍वतंत्र भावना का स्‍वतंत्र गान है!

एयरलिफ्ट

फिल्म- एयरलिफ्ट (2016)
गाना- सोच न सके
संगीतकार- अमाल मालिक
गीतकार- कुमार
गायक- अरिजीत सिंह, तुलसी कुमार 


तेनु इतना मैं प्यार करां
इक पल विच सौ बार करां
तू जावे जे मैनू छड के
मौत दा इंतज़ार करां

के तेरे लिए दुनिया छोड़ दी है
तुझपे ही सांस आके रुके
मैं तुझको कितना चाहता हूँ
ये तू कभी सोच ना सके
तेरे लिए दुनिया छोड़ दी है
तुझपे ही सांस आके रुके
मैं तुझको कितना चाहता हूँ
ये तू कभी सोच ना सके
कुछ भी नहीं है ये जहां
तू है तो है इसमें ज़िन्दगी
कुछ भी नहीं है ये जहां
तू है तो है इसमें ज़िन्दगी
अब मुझको जाना है कहाँ
के तू ही सफ़र है आख़िरी
के तेरे बिना जीना मुमकिन नहीं
ना देना कभी मुझको तू फ़ासले
मैं तुझको कितना चाहती हूँ
ये तू कभी सोच ना सके
तेरे लिए दुनिया छोड़ दी है
तुझपे ही सांस आके रुके
मैं तुझको कितना चाहता हूँ
ये तू कभी सोच ना सके
आँखों की है यह ख्वाहिशें
की चेहरे से तेरे  न हटें
नींदों में मेरी बस तेरे
ख्वाबों ने ली है करवटें
की तेरी ओर मुझको लेके चलें
ये दुनिया भर के सब रास्ते
मैं तुझको कितना चाहता हूँ
ये तू कभी सोच न सके
तेरे लिए दुनिया छोड़ दी है
तुझपे ही सांस आके रुके
मैं तुझको कितना चाहता हूँ
ये तू कभी सोच न सके


मातृभाषा


निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।

उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।

निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय।

इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।

और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।

तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।

विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।

भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।

सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।

क्योंकि इतना प्यार तुमसे...

फिल्म: क्योंकि (2005)
गाना- क्योंकि इतना प्यार तुमसे करते हैं हम 
संगीत: हिमेश रेशमिया
गीत: समीर
गायक: अलका याज्ञनिक , उदित नारायण



क्योंकि इतना प्यार तुमको करते हैं हम
क्या जां लोगे हमारी सनम

क्योंकि इतना प्यार तुमको करते हैं हम
क्योंकि इतना प्यार तुमको करते हैं हम
क्या जां लोगे हमारी सनम

क्योंकि इतना प्यार तुमको करते हैं हम
क्या जां लोगे हमारी सनम
क्योंकि इतना प्यार तुमको करते हैं हम

हमारे दिल की तुम थोड़ी सी कदर कर लो
हम तुम पे मरते हैं, थोड़ी सी फिकर कर लो
फिकर कर लो
क्योंकि इतना प्यार तुमको करते हैं हम
क्या जां लोगे हमारी सनम
क्योंकि इतना प्यार तुमको करते हैं हम

तूने ओ जाना दीवाना किया है
दीवाना किया इस कदर
दीवाना किया इस कदर
चाहत में तेरी भुलाया जहां को
ना दिल को किसी की खबर
ना दिल को किसी की खबर
रगों में मोहब्बत का, अहसास ज़रा भर लो
हम तुम पे मरते हैं, थोड़ी सी फिकर कर लो
फिकर कर लो

क्योंकि इतना प्यार तुमको करते हैं हम
क्या जां लोगे हमारी सनम
क्योंकि इतना प्यार तुमको करते हैं हम

तुमसे हैं साँसें, तुम्हीं से है धड़कन
तुम्हीं से है दीवानगी
तुम्हीं से है दीवानगी
रब ने हमें दी है जाने तमन्ना तुम्हारे लिए ज़िंदगी
तुम्हारे लिए ज़िंदगी
वादा संग जीने का, तुम जाने-जिगर कर लो
हम तुम पे मरते हैं, थोड़ी सी फिकर कर लो
फिकर कर लो

क्योंकि इतना प्यार तुमको करते हैं हम
क्या जां लोगे हमारी सनम
क्योंकि इतना प्यार तुमको करते हैं हम
क्या जां लोगे
क्या जां लोगे
क्या जां लोगे
क्या जां लोगे हमारी सनम



पीनाज़ मसानी




जब मेरी याद सताए तो मुझे ख़त लिखना
जब मेरी याद सताए तो मुझे ख़त लिखना
तुम को जब नींद न आए तो मुझे ख़त लिखना
जब मेरी याद सताए तो मुझे ख़त लिखना

नीले पेड़ों की घनी छाँव में हँसता सावन,
प्यासी धरती में समाने को तरसता सावन,
रात भर छत पे लगातार बरसता सावन,
दिल में जब आग लगाए तो
दिल में जब आग लगाए तो मुझे ख़त लिखना
तुम को जब नींद न आए तो मुझे ख़त लिखना

जब फड़क उठे किसी शाख़ पे पत्ता कोई,
गुदगुदाए तुम्हें बीता हुआ लम्हा कोई,
जब मेरी याद का बेचैन सफ़ीना कोई,
जी को रह-रह के जलाए तो
जी को रह-रह के जलाए तो मुझे ख़त लिखना
तुम को जब नींद न आए तो मुझे ख़त लिखना

जब निगाहों के लिये कोई नज़ारा न रहे,
चाँद छिप जाए गगन पर कोई तारा  न रहे,
भरे संसार में जब कोई सहारा न रहे
लोग हो जाएँ पराए तो
लोग हो जाएँ पराए तो मुझे ख़त लिखना
तुम को जब नींद न आए तो मुझे ख़त लिखना
जब मेरी याद सताए तो मुझे ख़त लिखना