बाबा नागार्जुन की चार कवितायें

जनकवि बाबा नागार्जुन के जन्मदिन पर उनकी कुछ कवितायें - 




गोर्की मखीम!
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
घुल चुकी है तुम्हारी आशीष
एशियाई माहौल में
दहक उठा है तभी तो इस तरह वियतनाम ।
अग्रज, तुम्हारी सौवीं वर्षगांठ पर
करता है भारतीय जनकवि तुमको प्रणाम ।


गोर्की मखीम!
विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, भीम
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!
गोर्की मखीम!


दर-असल'सर्वहारा-गल्प' का
तुम्हीं से हुआ था श्रीगणेश
निकला था वह आदि-काव्य
तुम्हारी ही लेखनी की नोंक से
जुझारू श्रमिकों के अभियान का...
देखे उसी बुढ़िया ने पहले-पहल
अपने आस-पास, नई पीढी के अन्दर
विश्व क्रान्ति,विश्व शान्ति, विश्व कल्याण ।
'मां' की प्रतिमा में तुम्ही ने तो भरे थे प्राण ।

गोर्की मखीम!
विपक्षों के लेखे कुलिश-कठोर, भीम
श्रमशील जागरूक जग के पक्षधर असीम!

गोर्की मखीम!

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वो गया
वो गया
बिल्कुल ही चला गया
पहाड़ की ओट में

लाल-लाल गोला सूरज का
शायद सुबह-सुबह
दीख जाए पूरब में
शायद कोहरे में न भी दीखे !
फ़िलहाल वो
डूबता-डूबता दीख गया !
दिनान्त का आरक्त भास्कर
जेठ के उजले पाख की नौवीं साँझ
पसारेगी अपना आँचल अभी-अभी
हिम्मत न होगी तमिस्रा को
धरती पर झाँकने की !
सहमी-सहमी-सी वो प्रतीक्षा करेगी
उधर, उस ओर
खण्डहर की ओट में !
जी हाँ, परित्यक्त राजधानी के
खण्डहरोंवाले उन उदास झुरमुटों में
तमिस्रा करेगी इन्तज़ार
दो बजे रात तक
यानि तिथिक्रम के हिसाब से,
आधी धुली चाँदनी
तब तक खिली रहेगी
फिर, तमिस्रा का नम्बर आएगा !
यानि अन्धकार का !

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सुबह-सुबह
तालाब के दो फेरे लगाए

सुबह-सुबह
रात्रि शेष की भीगी दूबों पर
नंगे पाँव चहलकदमी की

सुबह-सुबह
हाथ-पैर ठिठुरे, सुन्न हुए
माघ की कड़ी सर्दी के मारे

सुबह-सुबह
अधसूखी पतइयों का कौड़ा तापा
आम के कच्चे पत्तों का
जलता, कड़ुवा कसैला सौरभ लिया

सुबह-सुबह
गँवई अलाव के निकट
घेरे में बैठने-बतियाने का सुख लूटा

सुबह-सुबह
आंचलिक बोलियों का मिक्स्चर
कानों की इन कटोरियों में भरकर लौटा
सुबह-सुबह

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झुकी पीठ को मिला
किसी हथेली का स्पर्श
तन गई रीढ़


महसूस हुई कन्धों को
पीछे से,
किसी नाक की सहज उष्ण निराकुल साँसें
तन गई रीढ़

कौंधी कहीं चितवन
रंग गए कहीं किसी के होठ
निगाहों के ज़रिये जादू घुसा अन्दर
तन गई रीढ़

गूँजी कहीं खिलखिलाहट
टूक-टूक होकर छितराया सन्नाटा
भर गए कर्णकुहर
तन गई रीढ़

आगे से आया
अलकों के तैलाक्त परिमल का झोंका
रग-रग में दौड़ गई बिजली
तन गई रीढ़



NH 10

फिल्म-  NH 10
गाना- काँच की नींद आई (kaanch ki neend aayi)
संगीतकार- संजीव दर्शन
गीतकार- कुमार 
गायक- कनिका कपूर, दीपांशु पंडित



काँच की नींद आई
पत्थर के ख्वाब लाई
काँच की नींद आई
पत्थर के ख्वाब लाई
जाने रब जाने कब
ज़ख्मो से मिल गए नैना

छिल गए नैना – 8

चिट्ठी जावे न जावे संदेसा
सजन गयो किस देस
टूटे दिल की जग भी नहीं सुनता
ना ही सुने दरवेश
टुकड़ा-टुकड़ा इन साँसों का
सीने में है बिखरा पड़ा
टुकड़ा-टुकड़ा इन साँसों का
सीने में है बिखरा पड़ा
सूखा हुआ समंदर
है आँखों के अन्दर
धड़कन चलेगी कैसे
दिल में चुभे है खंज़र
दिन काले-काले लगे
लगती है काली-काली रैना

छिल गए नैना -8

काँच की नींद आई
पत्थर के ख्वाब लाई
काँच की नींद आई
पत्थर के ख्वाब लाई
जाने रब जाने कब
ज़ख्मो से मिल गए नैना

छिल गए नैना -8


गमन

फिल्म - गमन (१९७८)
गाना - 
सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान सा क्यों है
संगीतकार - 
जयदेव,
गीतकार - 
शहरयार,
गायक -  सुरेश वाडकर,

सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान सा क्यों है
सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान सा क्यों है
इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है
इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है

सीने में जलन

दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूंढें
दिल है तो
दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूंढें
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यों है
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यों है

सीने में जलन

तनहाई की ये कौन-सी मंज़िल है रफीकों
तनहाई की
तनहाई की ये कौन-सी मंज़िल है रफीकों
ता-हद-ए-नजर एक बयाबान सा क्यों है
ता-हद-ए-नजर एक बयाबान सा क्यों है

सीने में जलन

क्या कोई नयी बात नज़र आती है हम में
क्या कोई
क्या कोई नयी बात नज़र आती है हम में
आईना हमे देख के हैरान सा क्यों है
आईना हमे देख के हैरान सा क्यों है

सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान सा क्यों है
इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है

सीने में जलन

वह बाग़ में मेरा मुंतज़िर था

वह बाग़ में मेरा मुंतज़िर था
और चांद तुलूअ हो रहा था
ज़ुल्फ़े-शबे-वस्ल खुल रही थी
ख़ुशबू साँसों में घुल रही थी
आई थी मैं अपने पी से मिलने
जैसे कोई गुल हवा में खिलने
इक उम्र के बाद हँसी थी
ख़ुद पर कितनी तवज्जः दी थी

पहना गहरा बसंती जोड़ा
और इत्र-ए-सुहाग में बसाया
आइने में ख़ुद को फिर कई बार
उसकी नज़रों से मैंने देखा
संदल से चमक रहा था माथा
चंदन से बदन दमक रहा था
होंठों पर बहुत शरीर लाली
गालों पे गुलाल खेलता था
बालों में पिरोए इतने मोती
तारों का गुमान हो रहा था
अफ़्शाँ की लकीर माँग में थी
काजल आँखों में हँस रहा था
कानों में मचल रही थी बाली
बाहों में लिपट रहा था गजरा
और सारे बदन से फूटता था
उसके लिए गीत जो लिखा था
हाथों में लिए दिये की थाली
उसके क़दमों में जाके बैठी 
आई थी कि आरती उतारूँ
सारे जीवन को दान कर दूँ

देखा मेरे देवता ने मुझको
बाद इसके ज़रा-सा मुस्कराया
फिर मेरे सुनहरे थाल पर हाथ
रखा भी तो इक दिया उठाया
और मेरी तमाम ज़िन्दगी से
माँगी भी तो इक शाम माँगी

मदारी



फिल्म - मदारी
गाना - डमा डम डम
संगीतकार - पविशाल ददलानी
गीतकार - इरशाद कामिल
गायक - विशाल ददलानी  


डमा डम डम
डमा डम डम
डमा डम डम डम डू
डमा डम डम डम डू

ओये दिल की बातें  दिल ही जाने 
उलझ गए हैं ताने बाने 
चल अब ठेके या फिर थाने तू

डमा डम डम
डमा डम डम
डमा डम डम डम डू
डमा डम डम डम डू

अरे सच सड़कों पे नंगा नाचे 
झूठ कहे दिल्ली के खांचे 
सुन ले ओ महबूबा के चाचू 

डमा डम डम
डमा डम डम
डमा डम डम डम डू
डमा डम डम डम डू

ए अनपढ़ बैठा शिक्षा बांटे 
धर्म दिलों में बोये कांटे 
रोटी मांगों मिलते चांटे रे 

बैठ बैठ संतों की गोदी 
बिना तेल के जनता धो दी 
दिल्ली बैठा बड़ा विरोधी रे 

अरे जनता के संग वही झोल है 
पिछवाड़े में वही पोल है 
बहुमत झूठा नाप तोल है रे

आनी बानी धानी रानी 
इन सबने है मिलकर ठानी 
बेच के भारत माँ खा जानी रे 

डमा डम डम
डमा डम डम
डमा डम डम डम डू
डमा डम डम डम डू
ओये दिल की बातें  दि
ल ही जाने 
उलझ गए हैं ताने बाने 
चल अब ठेके या फिर थाने तू

दमा दमा दम
दमा दमा दम
दमा दमा दम दम दू
दमा दमा दम दम दू 

अरे सच सड़कों पे नंगा नाचे 
झूठ कहे दिल्ली के खांचे 
सुनले ओ महबूबा के चाचू 

दो लफ़्ज़ों की कहानी

फिल्म - दो लफ़्ज़ों की कहानी
गाना - सहरा
संगीतकार - अंकित तिवारी
गीतकार - संदीप नाथ
गायक - अंकित तिवारी 

इक वजह ढूंढते, बेवजह ढूंढते 
खो गया मैं जहाँ में जहाँ ढूंढते 
कुछ सिला ढूंढते, सिलसिला ढूंढते 
आ गया मैं कहाँ से कहाँ ढूंढते 

हर जगह हर गली मंजिलें ना मिले 
यूं ही साँसों में सांस लिए 
सेहरा मेरे रूबरू, बंजारा मैं क्या करूं
सेहरा मेरे रूबरू, बंजारा मैं क्या करूं

रास्ते हमेशा सफ़र ही रहे 
चैन के पल भी मुख़्तसर रहे 
रास्ते हमेशा सफ़र ही रहे 
चैन के पल भी मुख़्तसर रहे 

इक बयां-बा मिला, कारवां ढूंढते 
यूं ही सांसों में सांसें लिए 
सेहरा मेरे रूबरू, बंजारा मैं क्या करूं
सेहरा मेरे रूबरू, बंजारा मैं क्या करूं

फिल्म - दो लफ़्ज़ों की कहानी
गाना - कुछ तो है..
संगीतकार - अरमान मालिक
गीतकार - मनोज मुन्तशिर
गायक - अमाल मालिक 


आहटें कैसी ये आहटें
सुनता हूँ आज कल, ए दिल बता
दस्तकें देते हैं दस्तकें
क्यूँ अजनबी से पल, ये दिल बता

कुछ तो है जो नींद आये कम
कुछ तो है जो आँखें हैं नम
कुछ तो है जो तू कह दे तो
हँसते हँसते मर जाएँ हम

मुझसे ज्यादा मेरे जैसा
कोई है तो है तू
फिर ना जाने दिल मेरा क्यूँ
तुझको ना दे सकून

कुछ तो है जो दिल घबराए
कुछ तो है जो सांस ना आये
कुछ तो है जो हम होंठों से
कहते कहते कह ना पाएं

जो हमारे दरमियाँ हैं
इस को हम क्या कहें
इश्क क्या है इक लहर है
आओ इसमें बाहें

कुछ तो है जो हम हैं खोये
कुछ तो है जो तुम ना सोये
कुछ तो है जो हम दोनों यूँ
हँसते हँसते इतना रोये

फिल्म - दो लफ़्ज़ों की कहानी 
गाना - अँखियाँ 
संगीतकार - अर्जुना हरजाई  
गीतकार - कुमार  
गायक - कनिका कपूर 


अँखियां ने अँखियां नु 
रब्ब जाने क्यूँ दिए फ़ासले
अँखियां ने अँखियां नु 
रब्ब जाने क्यूँ दिए फ़ासले

रोंदियाँ ने छम छम करके 
तेरी यादों में मरके
रोंदियाँ ने छम छम करके 
तेरी यादों में मरके

भूल गईआं जिन्दरी दे रास्ते 
अँखियां ने अँखियां नु 
रब्ब जाने क्यूँ दिए फ़ासले
अँखियां ने अँखियां नु 
रब्ब जाने क्यूँ दिए फ़ासले

दुनिया की भीड़ में मैं तन्हा सी हो गयी 
पाकर जो तुझको खोया 
ख़ुद ही मैं खो गयो 
दुनिया की भीड़ में मैं तन्हा सी हो गयी 
पाकर जो तुझको खोया 
ख़ुद ही मैं खो गयो 

क्या बताऊँ तेरे बिन 
काजल से है ये दिन 
तारे भी बुझे बुझे हैं रात में 

अँखियां ने अँखियां नु 
रब्ब जाने क्यूँ दिए फ़ासले
अँखियां ने अँखियां नु 
रब्ब जाने क्यूँ दिए फ़ासले

राहों में बैठे बैठे 
नैन पथरा गए 
खुशियों के होंठों पे 
दर्द कैसे आ गए 
राहों में बैठे बैठे 
नैन पथरा गए 
खुशियों के होंठों पे 
दर्द कैसे आ गए 

सपने जो रूठे रूठे 
जुड़ के जो दिल है टूटे 
टूटी हैं लकीरें भी ये हाथ में 

अँखियां ने अँखियां नु 
रब्ब जाने क्यूँ दिए फ़ासले
अँखियां ने अँखियां नु 
रब्ब जाने क्यूँ दिए फ़ासले

रॉकी हैण्डसम


फिल्म - रॉकी हैण्डसम
गाना - ऐ खुदा
संगीतकार - सुमित बावरा, इन्दर बावरा
गीतकार - सचिन पाठक, शेखर अस्तित्व
गायक - राहत फ़तेह अली खान 


ले आई है बीते हुए 
लम्हों को फिर हाँ ये ज़िन्दगी 
यूँ बेरहम सी हो गयी 
लेने चली जान ये ज़िन्दगी 

ख़ुदा क्यूँ रूठ गया मुझसे 
नहीं था बैर मेरा तुझसे  
क्यूँ तूने छीन लिया मुझसे 
मेरा जहाँ..
ए ख़ुदा ख़ुदा 
तू बता बता..

ले आई है बीते हुए 
लम्हों को फिर हाँ ये ज़िन्दगी 
यूँ बेरहम सी हो गयी 
लेने चली जान ये ज़िन्दगी 

ख़ुदा क्यूँ रूठ गया मुझसे 
नहीं था बैर मेरा तुझसे 
क्यूँ तूने छीन लिया मुझसे 
मेरा जहां..
ए ख़ुदा ख़ुदा 
तू बता बता..

ये क्या किया ख़ुदा.. हाय 
ये क्यूँ किया ख़ुदा..
बता मेरे ख़ुदा..
थी क्या मेरी खता..

बेजान सी है ज़िन्दगी 
हर सांस है ग़मज़दा 

ये क्या किया ख़ुदा.. हाय 
ये क्यूँ किया ख़ुदा..
बता मेरे ख़ुदा..
थी क्या मेरी खता..

उम्मीद है टूटी हुई 
तनहाइयों का दौर है 
है ख्वाहिशें बिखरी हुई 
खामोशियों का शोर है 

बुला ले अपने पास मुझे 
ना आये जीना रास मुझे 
क्यूँ तूने छीन लिया मुझसे 
मेरा जहां..
ए ख़ुदा ख़ुदा 
तू बता बता..

ये क्या किया ख़ुदा.. हाय 
ये क्यूँ किया ख़ुदा..
बता मेरे ख़ुदा..
थी क्या मेरी खता..

बेजान सी है ज़िन्दगी 
हर सांस है ग़मज़दा 

ये क्या किया ख़ुदा.. हाय 
ये क्यूँ किया ख़ुदा..
बता मेरे ख़ुदा..
थी क्या मेरी खता..



फिल्म - रॉकी हैण्डसम
गाना - मेरे रहनुमा
संगीतकार - सुमित बावरा, इन्दर बावरा
गीतकार - मनोज मुन्तशिर, सागर लौहरी
गायक - श्रेया घोसल, इन्दर बावरा 


रहनुमा..
तू जो मिला सब मिल गया 
दिल की नमाजें जाके पहुंची फलक से आगे  
तो जाके पाया तुझको मेरे रहनुमा..

मुझको मेरा रब मिल गया 
बाहों से आगे तेरे 
दुनिया नहीं है मेरी 
रखले मुझको यहीं 
मेरे रहनुमा..

जो ना भाये तेरी नज़र को 
देखूंगी ना मैं फिर वो नज़ारा 
तू जो मिले तो छोड़ दूं ख़ुद को 
तुझमे कहीं है मेरा किनारा 
बस तू ही तू मुझे याद है 

दिल की नमाजें जाके 
पहुंची फलक से आगे 
तो जाके पाया तुझको 
मेरे रहनुमा..

गुजरी हूँ जब से 
मैं तेरे दर से 
हसने लगी हूँ मैं खुल के रहबर 
दर्द से तेरे रिश्ता जुडा तो 
अब मुस्कुराते हैं मेरे मंजर 
हाँ रब की मुझे सौगात है 

दिल की नमाजें जाके पहुंची फलक से आगे  
तो जाके पाया तुझको मेरे रहनुमा..

बाहों से आगे तेरे 
दुनिया नहीं है मेरी 
रखले मुझको यहीं 
मेरे रहनुमा.. 


फिल्म - रॉकी हैण्डसम
गाना - मेरे अल्फाजों की तरह
संगीतकार - अंकित तिवारी
गीतकार - अभेन्द्र कुमार  
गायक - अंकित तिवारी  


तेरे सिवा किसकी सोचूं मैं 
मेरी सोच पे तुम बैठे हो 
सांसें जहाँ बनती हैं मेरी 
उस मोड़ पे तुम रहते हो 

तू मेरे अल्फाजों की तरह 
तू मेरे अल्फाजों की तरह 
गुनगुना लू आजा मैं तुझे 
तू मेरी आवाजों की तरह 
ओ..
मेरे हाथों से जो अदा हो 
उस की चाहत 
गुज़रे जो रब के यहाँ से वो 
जन्नती सी रह तू 

सजदा तुम्हें सौ दफ़ा करूँ 
उस रब की तरह दीखते हो 
सांसें जहाँ बनती है मेरी
उस मोड़ पे तुम रहते हो 

तू मेरे अल्फाजों की तरह 
तू मेरे अल्फाजों की तरह 
गुनगुना लू आजा मैं तुझे 
तू मेरी आवाजों की तरह 

ख्वाबों के लबों पे तू ही था रुका 
या तेरा नाम था 
नींदें मेरी ढूंढती रहीं तुझे 
तू कहीं गुमनाम था 

लगदा हूँ मैं तेरे हुबहू 
और तुम भी मेरे जैसे हो 
सांसें जहाँ बनती हैं मेरी 
उस मोड़ पे तं रहते हो 

ओ.. तू मेरे अल्फाजों की तरह 
तू मेरे अल्फाजों की तरह 
गुनगुना लू आजा मैं तुझे 
तू मेरी आवाजों की तरह