कुछ शेर : २



दियो का कद घटाने के लिए रातें बड़ी करना ,
बड़े शेहरो में रहना हो तो बातें बड़ी करना

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सबको नहीं आता ,
किसी को छोड़ना हो तो फिर मुलाकातें बड़ी करना

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

मुसीबतों से उभरती है शक्सियत यारो
जो पत्थरों से न उलझे वो आइना क्या है

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

वसीम देखना मुड मुड के वो उसी की तरफ
किसी को छोड़ के जाना भी तो नहीं आया

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं,
तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी.

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

बुझते हैं तो बुझ जाए कोई गम नहीं करते
हम अपने चारागो की लौ को कम नहीं करते

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

घर से निकला हूं कि दिन जीत के अब लौटूँगा
रात आती तो यही ख्वाब दिखाई देता

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
लकीरें हाथ की अपने वह सब जला लेगा

- वसीम बरेलवी


तुम आये हो ना शब-ए-इंतज़ार गुजरी है 
तलाश में है सेहर बार बार गुजरी है

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था
वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

कोई तो बात है उस में
हर ख़ुशी जिस पे लुटा दी हमने

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

दिल नाउमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

कर रहा था गम-ए-जहां का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आये

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

- फैज़ अहमद फैज़ 



गम ने तेरे निचोड़ लिया कतरा कतरा खून
थोड़ा सा दर्द दिल में खटकने को रह गया

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

लुत्फ़ इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
रंज भी इतने उठाए हैं कि जी जानता है

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

निगाह-ए-यार ने की ख़ाना ख़राबी ऐसी
न ठिकाना है जिगर का, न ठिकाना दिल का

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

निगाह-ए-यार ने की ख़ाना ख़राबी ऐसी
न ठिकाना है जिगर का, न ठिकाना दिल का

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

निगाह-ए-यार ने की ख़ाना ख़राबी ऐसी
न ठिकाना है जिगर का, न ठिकाना दिल का

●◦●…∞◊ᴥ ᴥ◊∞…●◦●

दिल दे तो इस मिजाज़ का परवरदिगार दे
जो रंज की घड़ी को खुशी में गुज़ार दे


- दाग 

No comments:

Post a Comment

We do our best to provide you with the correct lyrics. However, Sometimes we make mistakes. So If you find any mistake in the lyrics, Please let us know in the comment.