सच मे, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं

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आईये आज पढ़ते हैं गुलज़ार साहब की एक बेहतरीन कविता "सच मे, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं". इन दिनों ये खूब पढ़ा और सराहा जा रहा है.


लोग सच कहते हैं –
औरतें बेहद अजीब होतीं है
रात भर पूरा सोती नहीं
थोड़ा थोड़ा जागती रहतीं है
नींद की स्याही में
उंगलियां डुबो कर
दिन की बही लिखतीं
टटोलती रहतीं है
दरवाजों की कुंडियाॅ
बच्चों की चादर
पति का मन..
और जब जागती हैं सुबह
तो पूरा नहीं जागती
नींद में ही भागतीं है

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं

हवा की तरह घूमतीं, कभी घर में, कभी बाहर…
टिफिन में रोज़ नयी रखतीं कविताएँ
गमलों में रोज बो देती आशाऐं

पुराने अजीब से गाने गुनगुनातीं
और चल देतीं फिर
एक नये दिन के मुकाबिल
पहन कर फिर वही सीमायें
खुद से दूर हो कर भी
सब के करीब होतीं हैं

औरतें सच में, बेहद अजीब होतीं हैं

कभी कोई ख्वाब पूरा नहीं देखतीं
बीच में ही छोड़ कर देखने लगतीं हैं
चुल्हे पे चढ़ा दूध…

कभी कोई काम पूरा नहीं करतीं
बीच में ही छोड़ कर ढूँढने लगतीं हैं
बच्चों के मोजे, पेन्सिल, किताब
बचपन में खोई गुडिया,
जवानी में खोए पलाश,

मायके में छूट गयी स्टापू की गोटी,
छिपन-छिपाई के ठिकाने
वो छोटी बहन छिप के कहीं रोती…

सहेलियों से लिए-दिये..
या चुकाए गए हिसाब
बच्चों के मोजे, पेन्सिल किताब

खोलती बंद करती खिड़कियाँ
क्या कर रही हो?
सो गयी क्या ?
खाती रहती झिङकियाँ

न शौक से जीती है ,
न ठीक से मरती है
कोई काम ढ़ंग से नहीं करती है

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं ।

कितनी बार देखी है…
मेकअप लगाये,
चेहरे के नील छिपाए
वो कांस्टेबल लडकी,
वो ब्यूटीशियन,
वो भाभी, वो दीदी…

चप्पल के टूटे स्ट्रैप को
साड़ी के फाल से छिपाती
वो अनुशासन प्रिय टीचर
और कभी दिख ही जाती है
कॉरीडोर में, जल्दी जल्दी चलती,
नाखूनों से सूखा आटा झाडते,

सुबह जल्दी में नहाई
अस्पताल मे आई वो लेडी डॉक्टर
दिन अक्सर गुजरता है शहादत में
रात फिर से सलीब होती है…

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं

सूखे मौसम में बारिशों को
याद कर के रोतीं हैं
उम्र भर हथेलियों में
तितलियां संजोतीं हैं

और जब एक दिन
बूंदें सचमुच बरस जातीं हैं
हवाएँ सचमुच गुनगुनाती हैं
फिजाएं सचमुच खिलखिलातीं हैं

तो ये सूखे कपड़ों, अचार, पापड़
बच्चों और सारी दुनिया को
भीगने से बचाने को दौड़ जातीं हैं…

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं ।

खुशी के एक आश्वासन पर
पूरा पूरा जीवन काट देतीं है
अनगिनत खाईयों को
अनगिनत पुलो से पाट देतीं है.

सच है, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं ।

ऐसा कोई करता है क्या?
रस्मों के पहाड़ों, जंगलों में
नदी की तरह बहती…
कोंपल की तरह फूटती…

जिन्दगी की आँख से
दिन रात इस तरह
और कोई झरता है क्या?
ऐसा कोई करता है क्या?

सच मे, औरतें बेहद अजीब होतीं हैं

ज़ालिमा - रईस

Song - Zaalima
Music - JAM8
Lyrics - Amitabh Bhattacharya
Singers - Arijit Singh and Harshdeep Kaur



जो तेरी खातिर तड़पे पहले से ही 
क्या उसे तड़पना ओ ज़ालिमा
जो तेरे इश्क में बहका पहले से ही 
क्या उसे बहकाना ओ ज़ालिमा ओ ज़ालिमा

आँखें मरहबा, बातें मरहबा
मैं सौ मर्तबा दीवाना हुआ 
मेरा न रहा जब से दिल मेरा 
तेरे हुस्न का निशाना हुआ 

जिसकी हर धड़कन तू हो 
ऐसे दिल को क्या धड़कना
ओ ज़ालिमा ओ ज़ालिमा 

जो तेरी खातिर तड़पे पहले से ही 
क्या उसेय तड़पना ओ ज़ालिमा ओ ज़ालिमा 

साँसों में तेरी नजदीकियों का 
इत्र तू घोल दे घोल दे..
मैं ही क्यों इश्क जाहिर करूँ 
टू भी कभी बोल दे बोल दे 

लेके जान ही जाएगा मेरी 
कातिल हर तेरा बहाना हुआ 

तुझसे ही शुरू
तुझ पे ही खत्म
मेरे प्यार का फसाना हुआ 

टू शम्मा है तो याद रखना 
मैं भी हो परवाना 
ओ ज़ालिमा ओ ज़ालिमा 

जो तेरी खातिर तड़पे पहले से ही 
क्या उसे तड़पना ओ ज़ालिमा ओ ज़ालिमा 

दीदार तेरा मिलने के बाद ही 
छूटे मेरी अंगडाईयां 
तू ही बता दे क्यों ज़ालिमा मैं कहलाई 

क्यों इस तरह से दुनिया जहाँ में 
करता है मेरी रुसवाई 
तेरा कसूर और ज़ालिमा मैं कहलाई 

दीदार तेरा मिलने के बाद ही 
छूटे मेरी अंगडाईयां 
तू ही बता दे क्यों ज़ालिमा मैं कहलाई 

गो पागल - जॉली एलएलबी 2

Movie: Jolly Llb 2
Singer: Raftaar,Nindy Kaur
Additional Vocals: Girish Nakod,Manj Musik
Music Director: Manj Musik
Co-Composed By Nilesh Patel
Lyrics: Manj Musik,Raftaar



नज़रों के कट्टे से मारे तू गोली रे 
ऐसा ज़हर हैं जो मारे सिलौली रे 

नज़रों के कट्टे से मारे तू गोली रे 
ऐसा ज़हर हैं जो मारे सिलौली रे 

तेरा रंग उड़ाउँ 
पम्प चलाऊ तुझे भिगाऊँ 
तेरे गाल को लाल बनाऊं 
क्योकि आज बेबी होली है 

गो पागल 
गो गो गो..... गो पागल 
गो गो गो .... होली है 
गो गो गो...... गो पागल 
गो गो गो... होली है 

भीगी भीगी लगे लवली लवली 
लगे रंग में तू कमली कमली 
तेरे पीछे में अमली अमली 
छीने चैना 

थोड़ी भांग तो चढ़ जाने दे 
गड़बड़ थोड़ी बढ़ जाने दे 
कुछ होगा ना सड़ जाने से 
होली है ना...... 

गो पागल....... गो पागल...... 
काहे तू करे न्यू पागल 
पानी का लगा के गूगल 
ना आज मिलेगा टॉवल 

मेरे साथ में टोली है 
ऐसे बन मत भोली रे 
बोतल मैने खोली क्योकि 
आज बेबी होली है 

गो पागल 
गो गो गो..... गो पागल 
गो गो गो .... होली है 
गो गो गो...... गो पागल 
गो गो गो... होली है 

तेरे इरादों पे फेरुंगी पानी रे 
करने ना दुँगी तुझे मनमानी रे 

तेरे इरादों पे फेरुंगी पानी रे 
करने ना दुँगी तुझे मनमानी रे 

मुझको और सता ना 
पीछे पीछे आ ना 
भँवरे की तरह मढ़राना 
बंद करदे शैतानी रे 
होली है 

गो पागल 
गो गो गो..... गो पागल 
गो गो गो .... होली है 
गो गो गो...... गो पागल 
गो गो गो... होली है 

गो पागल 
गो गो गो..... गो पागल 
गो गो गो .... होली है 
गो गो गो...... गो पागल 
गो गो गो... होली है

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली 

रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली 

जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली 

मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली 

होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली

 - मीना कुमारी 

जिस पर तेरा नाम नहीं

तेरे पैरों चला नहीं जो 
धूप छाँव में ढला नहीं जो 
वह तेरा सच कैसे, 
जिस पर तेरा नाम नहीं?

तुझसे पहले बीत गया जो 
वह इतिहास है तेरा 
तुझको हीं पूरा करना है 
जो बनवास है तेरा 
तेरी साँसें जिया नहीं जो 
घर आँगन का दिया नहीं जो 
वो तुलसी की रामायण है 
तेरा राम नहीं.

तेरा हीं तन पूजा घर है 
कोई मूरत गढ़ ले 
कोई पुस्तक साथ न देगी 
चाहे जितना पढ़ ले 
तेरे सुर में सजा नहीं जो 
इकतारे पर बजा नहीं जो 
वो मीरा की संपत्ति है 
तेरा श्याम नहीं.
- निदा फाजली 

एहसास - जां निसार अख्तर

मैं कोई शे'र न भूले से कहूँगा तुझ पर 
फ़ायदा क्या जो मुकम्मल तेरी तहसीन न हो 
कैसे अल्फ़ाज़ के साँचे में ढलेगा ये जमाल 
सोचता हूँ के तेरे हुस्न की तोहीन न हो   

हर मुसव्विर ने तेरा नक़्श बनाया लेकिन 
कोई भी नक़्श तेरा अक्से-बदन बन न सका 
लब-ओ-रुख़्सार में क्या क्या न हसीं रंग भरे 
पर बनाए हुए फूलों से चमन बन न सका  

हर सनम साज़ ने मर-मर से तराशा तुझको
पर ये पिघली हुई रफ़्तार कहाँ से लाता
तेरे पैरों में तो पाज़ेब पेहनदी लेकिन 
तेरी पाज़ेब की झनकार कहाँ से लाता  

शाइरों ने तुझे तमसील में लाना चाहा 
एक भी शे'र न मोज़ूँ तेरी तस्वीर बना
तेरी जैसी कोई शै हो तो कोई बात बने
ज़ुल्फ़ का ज़िक्र भी अल्फ़ाज़ की ज़ंजीर बना   

तुझको को कोई परे-परवाज़ नहीं छू सकता
किसी तख़्यील में ये जान कहाँ से आए
एक हलकी सी झलक तेरी मुक़य्यद करले 
कोई भी फ़न हो ये इमकान कहाँ से आए   

तेर शायाँ कोईपेरायाए-इज़हार नहीं 
सिर्फ़ वजदान में इक रंग सा भर सकती है 
मैंने सोचा है तो महसूस किया है इतना
तू निगाहों से फ़क़त दिल में उतर सकती है  

रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है

रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती है
रात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहीं
कांच का नीला सा गुम्बद है, उड़ा जाता है
ख़ाली-ख़ाली कोई बजरा सा बहा जाता है
चाँद की किरणों में वो रोज़ सा रेशम भी नहीं
चाँद की चिकनी डली है कि घुली जाती है
और सन्नाटों की इक धूल सी उड़ी जाती है
काश इक बार कभी नींद से उठकर तुम भी
हिज्र की रातों में ये देखो तो क्या होता है 
- गुलज़ार 

हानिकारक बापू - दंगल

Movie: Dangal
Singers: Sarwar Khan & Sartaz Khan Barna
Lyrics: Amitabh Bhattacharya
Music: Pritam


औरों पे करम, बच्चों पे सितम
रे बापू मेरे ये ज़ुल्म ना कर
ये ज़ुल्म ना कर..

डिंग डोंग, डिंग डोंग.. रे बापू

डिंग डोंग, डिंग डोंग..
बापू सेहत के लिए
बापू सेहत के लिए
तू तो हानिकारक है
बापू सेहत के लिए
तू तो हानिकारक है

हम पे थोड़ी दया तो करो
हम नन्हे बालक है

प्लीज ना इतना
प्लीज ना इतना

ख़ुदकुशी के लायक है
बापू सेहत के लिए
तू तो हानिकारक है

डिंग डोंग, डिंग डोंग.. रे बापू

तन्ने बोला पिकनिक शिक्निक जाना है मना
यो तो टार्चर है घाना
रे यो तो टार्चर है घाना
रे बच्चो से ई बोले
के ना करना बचपना
यो तो टार्चर है घाना
रे यो तो टार्चर है घाना

रे बापू
टॉफ़ी चूरन खेल खिलोने
कुलचे नान पराठा
केह गए हैं टाटा
जबसे बापू तूने डाटा
जिस उम्र में शोभा देते

मस्त सैर सपाटा
उस उम्र को नाप रहा है
क्यूँ घडी का कांटा

अपनी किस्मत की गाडी की
खस्ता हालत है

ओ रे म्हारे बापू
ओ आ गयो रे बापू
ओ हमारे बापू
इस घडी के वाहन चालक हैं
बापू सेहत के लिए
हाँ तू तो हानिकारक है
तन्ने बोला खट्टा तीखा खाना है मना
यो तो टार्चर है घाना
रे यो तो टार्चर है घाना
रे मिटटी की गुडिया से बोले
चल बॉडी बना
यो तो टार्चर है घाना

रे यो तो टार्चर है घाना
हेय.. रे बापू..
मम.. तेल लेने गया रे बचपन
झड गयी रे फुलवारी
कर रहे हैं जाने कैसी
जंग की तैयारी
सोते जागते छूट रही है
आंसू की पिचकारी
फिर भी खुश ना हुआ मोगाम्बो
हम तेरे बलिहारी

तेरी नज़रों में क्या हम
इतने नालायक हैं

रे तुझसे बेहतर तो
मन्ने छोड़ दो रे बापू

रे तुझसे बेहतर अपनी
हिंदी फिल्मो के खलनायक हैं
बापू सेहत के लिए
तू तो हानिकारक है

डिंग डोंग, डिंग डोंग.. रे बापू

एन्ना सोना क्यूँ रब्ब ने बनाया - ओके जानू

Movie: Ok Jaanu
Singer: Arijit Singh
Lyrics: Gulzar
Music: A. R. Rahman


एन्ना सोना क्यूँ रब्ब ने बनाया

आवां जावां ते मैं यारा नु मनावां
आवन जावन ते मैं यारा नु मनावां
एन्ना सोना एन्ना सोना
एन्ना सोना ओ..

एन्ना सोना क्यूँ रब्ब ने बनाया
एन्ना सोना ओ..
एन्ना सोना ओ..
एन्ना सोना एन्ना सोना..

कोल होवे ते सेख लगदा ऐ
दूर जावे ते दिल जल्दा ऐ
कहदी अग्ग नाल रब्ब ने बनाया
रब्ब ने बनाया, रब्ब ने बनाया

एन्ना सोना क्यूँ रब्ब ने बनाया
एन्ना सोना क्यूँ रब्ब ने बनाया
आवां जावां ते मैं यारा नु मनावां
आवां जावां ते मैं यारा नु मनावां

एन्ना सोना ओ..
एन्ना सोना एन्ना सोना..

ताप लगे ना तदी चांदी दा
सारी राती मैं ओस छिडकावां
किन्ने दरदा नाल रब्ब ने बनाया
रब्ब ने बनाया रब्ब ने बनाया

एन्ना सोना क्यूँ रब्ब ने बनाया

आवां जावां ते मैं यारा नु मनावां
आवन जावन ते मैं यारा नु मनावां
एन्ना सोना एन्ना सोना
एन्ना सोना ओ..

गिलहरियाँ - दंगल

Movie - Dangal
Singer: Jonita Gandhi
Lyrics: Amitabh Bhattacharya
Music: Pritam

रंग बदल बदल के
क्यूँ चहक रहे हैं
दिन दुपहरियां

मैं जानू ना जानू ना जानू ना जानू ना
क्यूँ फुदक फुदक के
धडकनों की चल रही गिलहरियाँ

मैं जानू ना जानू ना जानू ना जानू ना
रंग बदल बदल के
क्यूँ चहक रहे हैं
दिन दुपहरियां

मैं जानू ना जानू ना जानू ना जानू ना
क्यूँ फुदक फुदक के
धडकनों की चल रही गिलहरियाँ

मैं जानू ना, जानू ना
क्यूँ ज़रा सा मौसम सिरफिरा है
या मेरा मूड मसखरा है, मसखरा है
जो जायका मनमानियों का है
वो कैसा रास भरा है

मैं जानू ना जानू ना जानू ना जानू ना
क्यूँ हजारे गुलमोहर से
भर गयी है ख्वाहिशों की टहनियां

मैं जानू ना जानू ना जानू ना जानू ना
क्यूँ हजारे गुलमोहर से
धडकनों की चल रही गिलहरियाँ
मैं जानू ना, जानू ना, जानू ना, जानू ना

हा.. हे हे हो..

एक नयी सी दोस्ती आसमान से हो गयी
ज़मीन मुझसे जल के
मुंह बना के बोले
तू बिगड़ रही है

ज़िन्दगी भी आज कल
गिनतियों से लूम के
गणित के आंकड़ों के साथ
एक आधा शेर पढ़ रही है

मैं सही ग़लत के पीछे
छोड़ के चली कचेहरियां

मैं जानू ना जानू ना जानू ना जानू ना
क्यूँ फुदक फुदक के
धडकनों की चल रही गिलहरियाँ

मैं जानू ना, जानू ना
क्यूँ ज़रा सा मौसम सिरफिरा है
या मेरा मूड मसखरा है, मसखरा है
जो जायका मनमानियों का है
वो कैसा रास भरा है

मैं जानू ना, जानू ना, जनु ना, जानू ना
क्यूँ हजारे गुलमोहर से
भर गयी है ख्वाहिशों की टहनियां

मैं जानू ना जानू ना जानू ना जानू ना
क्यूँ फुदक फुदक के
धडकनों की चल रही गिलहरियाँ
मैं जानू ना जानू ना जानू ना जानू ना..

चल न कुछ करते हैं -ओके जानू

Song : Ok Jaanu
Music : A. R. Rahman
Lyrics : Gulzar
Singers : A. R. Rahman, Srinidhi Venkateshजानू..


चल न कुछ करते हैं
आ लकीरें पड़ते हैं
चल न कुछ करते हैं

धीरे-धीरे जरा दम लेना
प्यार से जो मिले गम लेना
दिल पे जरा वो कम लेना
ओके जानू तू धिन धिन ना

धीरे-धीरे जरा दम लेना
प्यार से जो मिले गम लेना
दिल पे जरा वो कम लेना
ओके जानू तू धिन धिन ना

कल की बीती कल हुई थी
आने वाला कल बड़ा है
दिल ने फिर करवट ली देखो
दिल में कोई पल पड़ा है

धीरे-धीरे जरा दम लेना
प्यार से जो मिले गम लेना
दिल पे जरा वो कम लेना
ओके जानू तू धिन धिन ना

जानू..
चल न कुछ करते हैं
आ लकीरें पड़ते हैं
चल न कुछ करते हैं

ये आयु ये वायु
ये मंगल पे दंगल
बड़ी ना ये
किसी से
तू लकी लगती है

सभी कुछ है कल्याण
की लकीरों में
लेकिन लगन को नहीं है
तू लकी लगती है

धीरे-धीरे जरा दम लेना
प्यार से जो मिले गम लेना
दिल पे जरा वो कम लेना
ओके जानू तू धिन धिन ना

धीरे-धीरे जरा दम लेना
प्यार से जो मिले गम लेना
दिल पे जरा वो कम लेना
ओके जानू तू धिन धिन ना

ना समझ सी एक लड़की
पुरे दिल की चोर निकली
दे गयी माथे पे रख के
शाम के सूरज की टिकली

धीरे-धीरे जरा दम लेना
प्यार से जो मिले गम लेना
दिल पे जरा वो कम लेना
ओके जानू तू धिन धिन ना

जानू..
चल न कुछ करते हैं
आ लकीरें पड़ते हैं
चल न कुछ करते हैं
आ लकीरें पड़ते हैं
जानू..

काबिल

Song: Kaabil Hoon
Singer: Jubin Nautiyal And Palak Muchhal
Music: Rajesh Roshan
Lyrics: Nasir Faraaz 

तेरे मेरे सपने सभी
तेरे मेरे सपने सभी

बंद आँखों के ताले में हैं
चाभी कहाँ ढूढेें बता
वो चांंद के प्‍याले में है
फिर भी सपने कर दिखाऊं
सच तो कहना बस यही

मैं तेरे काबिल हूॅ या
तेरे काबिल नहीं
मैं तेरे काबिल हूॅ या
तेरे काबिल नहीं

तेरे मेरे सपने सभी
तेरे मेरे सपने सभी
बंद आँखों के ताले में हैं
चाभी कहाँ ढूढेें बता
वो चांंद के प्‍याले में है
फिर भी सपने कर दिखाऊ
सच तो कहना बस यही

मैं तेरे काबिल हूॅ या
तेरे काबिल नहीं
मैं तेरे काबिल हूॅ या
तेरे काबिल नहीं

ये शरारतें ये मस्तियां
अपना यही अंंदाज हैं
समझायें क्‍या कैैसे कहें
जीने का इसमें राज है

धड़कन कहाँ ये धड़कती हैै
दिल में तेेरी आवाज है
अपनी सब खुशियाें का अब तो
येे अंदाज है

तेरे मेरे सपने सभी
तेरे मेरे सपने सभी
बंद आँखों के ताले में हैं
चाभी कहाँ ढूढेें बता
वो चांंद के प्‍याले में है
फिर भी सपने कर दिखाऊ
सच तो कहना बस यही

मैं तेरे काबिल हूॅ या
तेरे काबिल नहीं
मैं तेरे काबिल हूॅ या
तेरे काबिल नहीं

सागर की रेत पर दिल को जब
ये बनायेंगी मेरी उंगलियां
तेरे नाम को ही पुकार के
खनकेंगी मेरी चूूडियां

तुझमें अदा ऐसी है आज
उडती हो जैसी तितलियां

फीकी अब ना होगी कभी
ये रंगीनियां

तेरे मेरे सपने सभी
तेरे मेरे सपने सभी
बंद आँखों के ताले में हैं
चाभी कहाँ ढूढेें बता
वो चांंद के प्‍याले में है
फिर भी सपने कर दिखाऊ
सच तो कहना बस यही

मैं तेरे काबिल हूॅ या
तेरे काबिल नहीं
मैं तेरे काबिल हूॅ या
तेरे काबिल नहीं

Song: Kuch Din
Singer: Jubin Nautiyal
Music: Rajesh Roshan
Lyrics: Manoj Muntashir


कुछ दिन से मुझे
तेरी आदत हो गयी है

कुछ दिन से मुझे
तेरी आदत हो गयी है
कुछ दिन से मेरी
तू ज़रुरत गयी है

तेरे लबों से में हँसू
तेरी लहरों में बहू
मुझको कसम लगे अगर
तेरे बिना में जियूँ

कुछ दिन से मुझे
तेरी आदत हो गयी है
कुछ दिन से मेरी
तू ज़रुरत हो गयी है

तेरे लबों से में हँसू
तेरी लहरों में बहू
मुझको कसम लगे अगर
तेरे बिना में जियूँ

तेरी हवा में ही उड़ूँ
में आज कल में आज कल
तेरे कदम से ही चलू
में आज कल में आज कल

कुछ भी नहीं मुझमे मेरा
जो भी है वो है तेरा

कुछ दिन से मुझे
तेरी आदत हो गयी है

अक्सर अता पता मेरा
रहता नहीं रहता नहीं
कोई निसान मेरा कहीं
मिलता नहीं मिलता नहीं

ढूँढा गया जब भी मुझे
तेरी गली में मिला

कुछ दिन से मुझे
तेरी आदत हो गयी है
कुछ दिन से मेरी
तू ज़रुरत हो गयी है

तेरे लबों से में हँसू
तेरी लहरों में बहू
मुझको कसम लगे अगर
तेरे बिना में जियूँ


गूगली वूगली वूश

Album - Ponds Googly Woogly Wosh
Singer - Monali Thakur, Armaan Malik

सर्द सर्द मौसम में 
जो भर ले अपनी बाहों में 
रूखी रूखी सी हवाओं में 
घुल जाए प्यार फिजाओं में 
देख बिन के हम कहाँ हैं 
बिन देखे मौका,
गूगली वूगली वुश 
दे दे मुस्कानों का तोहफा
मेरे कोमल कोमल गाल छू के 
कर दे दिल को खुश 
और कहे 
गूगली वूगली वूश 

हलके हलके कोहरे में 
जो भर ले वू निगाहों में 
धीमी शर्म गालों पे 
उडूं आसमानों में जाते
जाते हम जहाँ जहाँ हैं 
आते वो वहां..वहां हैं 
प्यार वाला नोंकझोंक 
वो आ के अचानक 
गूगली वूगली वुश

खोले मन का झरोखा 
मेरे कोमल कोमल गाल छू के 
कर दे दिल को खुश 
और कहे 
गूगली वूगली वुश

एक मोअ'म्मा है समझने का - फ़ानी बदायूनी

एक मोअ'म्मा है समझने का ना समझाने का
ज़िन्दगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का

ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तेरे दीवाने का
एक गोशा है यह दुनिया इसी वीराने का

मुख़्तसर क़िस्सा-ए-ग़म यह है कि दिल रखता हूँ
राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है इस अफ़साने का

तुमने देखा है कभी घर को बदलते हुए रंग
आओ देखो ना तमाशा मेरे ग़मख़ाने का

दिल से पोंछीं तो हैं आँखों में लहू की बूंदें
सिलसिला शीशे से मिलता तो है पैमाने का

हमने छानी हैं बहुत दैर-ओ-हरम की गलियाँ
कहीं पाया न ठिकाना तेरे दीवाने का

हर नफ़स उमरे-गुज़िश्ता की है मय्यत फ़ानी
ज़िन्दगी नाम है मर मर के जिये जाने का


हसरत मोहनी - कहकशां

एल्बम - कहकशां 

ग़ज़ल - चुपके चुपके रात दिन 
गायक  - जगजीत सिंह 

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है,
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है,

बाहज़ारां इज़्तिराब-ओ-सदहज़ारां इश्तियाक,
तुझसे वो पहले पहल दिल का लगाना याद है,

तुझसे मिलते ही वो कुछ बेबाक हो जाना मेरा,
और तेरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है,

खींच लेना वो मेरा पर्दे का कोना दफ़्फ़ातन,
और दुपट्टे से तेरा वो मुँह छिपाना याद है,

जानकर सोता तुझे वो क़सा-ए-पाबोसी मेरा,
और तेरा ठुकरा के सर वो मुस्कुराना याद है,

तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़राह-ए-लिहाज़,
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है,

जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना ना था,
सच कहो क्या तुम को भी वो कारखाना याद है,

ग़ैर की नज़रों से बचकर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़,
वो तेरा चोरीछिपे रातों को आना याद है,

आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़,
वो तेरा रो-रो के मुझको भी रुलाना याद है,

दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिये,
वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है,

देखना मुझको जो बर्गश्ता तो सौ सौ नाज़ से,
जब मना लेना तो फिर ख़ुद रूठ जाना याद है,

चोरी चोरी हम से तुम आकर मिले थे जिस जगह,
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है,

बेरुख़ी के साथ सुनाना दर्द-ए-दिल की दास्तां,
और तेरा हाथों में वो कंगन घुमाना याद है,

वक़्त-ए-रुख़सत अलविदा का लफ़्ज़ कहने के लिये,
वो तेरे सूखे लबों का थरथराना याद है,

बावजूद-ए-इद्दा-ए-इत्तक़ा ‘हसरत’ मुझे,
आज तक अहद-ए-हवस का ये फ़साना याद है,




ग़ज़ल - तोड़कर अहद-ए-करम नाआशना हो जाइये,
गायक - जगजीत सिंह 

तोड़कर अहद-ए-करम नाआशना हो जाइये,
बंदापरवर जाइये अच्छा ख़फ़ा हो जाइये,

राह में मिलिये कभी मुझ से तो अज़राह-ए-सितम,
होंठ अपने काटकर फ़ौरन जुदा हो जाइये,

जी में आता है के उस शोख़-ए-तग़ाफ़ुल केश से,
अब ना मिलिये फिर कभी और बेवफ़ा हो जाइये,

हाये रे बेइख़्तियारी ये तो सब कुछ हो मगर,
उस सरापानाज़ से क्यूंकर ख़फ़ा हो जाइये,





ग़ज़ल - रोशन जमाल-ए-यार से है अन्जुमन तमाम,
गायक - जगजीत सिंह 

रोशन जमाल-ए-यार से है अन्जुमन तमाम,
दहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमाम,

हैरत ग़ुरूर-ए-हुस्न से शोखी से इज़्तराब,
दिल ने भी तेरे सीख लिये हैं चलन तमाम,

अल्लह रे जिस्म-ए-यार की खूबी के ख़ुद-ब-ख़ुद,
रंगीनियों में ड़ूब गया पैरहन तमाम,

देखो तो चश्म-ए-यार की जादूनिगाहियां,
बेहोश इक नज़र में हुई अंजुमन तमाम,

शिरीनी-ए-नसीम है सोज़-ओ-ग़ुदाज़-ए-मीर,
‘हसरत’ तेरे सुख़न पे है रख़्स-ए-सुख़न तमाम,




ग़ज़ल - अब तो उठ सकता नहीं आंखों से बार-ए-इन्तज़ार
गायक - चित्रा सिंह 

अब तो उठ सकता नहीं आंखों से बार-ए-इन्तज़ार,
किस तरह काटे कोई लैल-ओ-नहार-ए-इन्तज़ार,

उन की उल्फ़त का यक़ीं हो उन् के आने की उम्मीद,
हों ये दोनों सूरतें तब है बहार-ए-इन्तज़ार,

मेरी आहें नारासा मेरी दुआऐं नाक़ुबूल,
या इलाही क्या करूं मै शर्मसार-ए-इन्तज़ार,

उन के ख़त की आराज़ू है उन के आमद का ख़याल,
किस क़दर फैला हुआ है कारोबार-ए-इन्तज़ार,




कहकशां - ऐ मलिहाबाद के रंगीं गुलिस्तां अलविदा

ऐ मलिहाबाद के रंगीं गुलिस्तां अलविदा
अलविदा ऐ सरज़मीन-ए-सुबह-ए-खन्दां अलविदा
अलविदा ऐ किशवर-ए-शेर-ओ-शबिस्तां अलविदा
अलविदा ऐ जलवागाहे हुस्न-ए-जानां अलविदा

तेरे घर से एक ज़िन्दा लाश उठ जाने को है
आ गले मिल लें कि आवाज़-ए-जरस आने को है
ऐ मलिहाबाद के रंगीं गुलिस्तां अलविदा

हाय क्या-क्या नेमतें मिली थीं मुझ को बेबहा
यह खामोशी यह खुले मैदान यह ठन्डी हवा
वाए, यह जां बख्श गुस्ताहाए रंगीं फ़िज़ां
मर के भी इनको न भूलेगा दिल-ए-दर्द आशना
मस्त कोयल जब दकन की वादियों में गायेगी
यह सुबह की छांव बगुलों की बहुत याद आएगी
ऐ मलिहाबाद के रंगीं गुलिस्तां अलविदा

कल से कौन इस बाग़ को रंगीं बनाने आएगा
कौन फूलों की हंसी पर मुस्कुराने आएगा
कौन इस सब्ज़े को सोते से जगाने आएगा
कौन जागेगा क़मर के नाज़ उठाने के लिये
चांदनी रात को ज़ानू पर सुलाने के लिये
ऐ मलिहाबाद के रंगीं गुलिस्तां अलविदा

आम के बाग़ों में जब बरसात होगी पुरखरोश
मेरी फ़ुरक़त में लहू रोएगी चश्मे मय फ़रामोश
रस की बूंदें जब उड़ा देंगी गुलिस्तानों के होश
कुंज-ए-रंगीं में पुकारेंगी हवाएँ 'जोश जोश'
सुन के मेरा नाम मौसम ग़मज़दा हो जाएगा
एक महशर सा गुलिस्तां में बपा हो जाएगा
ऐ मलिहाबाद के रंगीं गुलिस्तां अलविदा

आ गले मिल लें खुदा हाफ़िज़ गुलिस्तान-ए-वतन
ऐ अमानीगंज के मैदान ऐ जान-ए-वतन
अलविदा ऐ लालाज़ार-ओ-सुम्बुलिस्तान-ए-वतन
अस्सलाम ऐ सोह्बत-ए-रंगीं-ए-यारान-ए-वतन
हश्र तक रहने न देना तुम दकन की खाक में
दफ़न करना अपने शाएर को वतन की खाक में
ऐ मलिहाबाद के रंगीं गुलिस्तां अलविदा



ऐ वतन मेरे वतन रूह-ए-रवानी-ए-एहराब,
ऐ के ज़र्रों में तेरे बू-ए-चमन रंग-ए-बहार,
रेज़े अल्मास के तेरे खस-ओ-ख़ाशाक़ में हैं,
हड़्ड़ियां अपने बुज़ुर्गों की तेरी ख़ाक में हैं,
तुझ से मुँह मोड़ के मुँह अपना दिखयेंगे कहां,
घर जो छोड़ेंगे तो फिर छांव निछायेंगे कहां,
बज़्म-ए-अग़यार में आराम ये पायेंगे कहां,
तुझ से हम रूठ के जायेंगे तो जायेंगे कहां,



किस को आती है मसिहाई किसे आवाज़ दूँ
बोल ऐ ख़ूं ख़ार तनहाई किसे आवाज़ दूँ

चुप रहूँ तो हर नफ़स डसता है नागन की तरह
आह भरने में है रुसवाई किसे आवाज़ दूँ

उफ़्फ़ ख़ामोशी की ये आहें दिल को बरमाती हुई
उफ़्फ़ ये सन्नाटे की शेहनाई किसे आवाज़ दूँ





बोल इकतारे झन झन झन झन,


काहकशां है मेरी सुंदन,

शाम की सुर्ख़ी मेरा कुंदन,

नूर का तड़का मेरी चिलमन,

तोड़ चुका हूं सारे बंधन,

पूरब पच्छम उत्तर दक्खन,

बोल इकतारे झन झन झन झन,


मेरे तन में गुलशन सबके,

मेरे मन में जोबन सबके,

मेरे घट में साजन सबके,

मेरी सूरत दर्शन सबके,

सबकी सूरत मेरा दर्शन,

बोल इकतारे झन झन झन झन,


सब की झोली मेरी खोली,

सब की टोली मेरी टोली,

सब की होली मेरी होली,

सब की बोली मेरी बोली,

सब का जीवन मेरा जीवन,

बोल इकतारे झन झन झन झन,


सब के काजल मेरे पारे,

सब की आँखें मेरे तारे,

सब की साँसें मेरे धारे,

सारे इंसां मेरे प्यारे,

सारी धरती मेरा आंगन,

बोल इकतारे झन झन झन झन,








तुझ से रुख़सत की वो शाम-ए-अश्क़-अफ़्शां हाए हाए,
वो उदासी वो फ़िज़ा-ए-गिरिया सामां हाए हाए,

यां कफ़-ए-पा चूम लेने की भिंची सी आरज़ू,
वां बगल-गीरी का शरमाया सा अरमां हाए हाए,

वो मेरे होंठों पे कुछ कहने की हसरत वाये शौक़,
वो तेरी आँखों में कुछ सुनने का अरमां हाए हाए,



जिगर मोरादाबादी - कहकशां


एल्बम - कहकशां 
ग़ज़ल - अल्लाह रे वो शिद्दत-ए-जज़्बात का आलम
गायक - जगजीत सिंह 

मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम,
ख़ामोश अदाओं में वो जज़्बात का आलम,

अल्लाह रे वो शिद्दत-ए-जज़्बात का आलम,
कुछ कह के वो भूली हुई हर बात का आलम,

आरिज़ से ढ़लकते हुए शबनम के वो क़तरे,
आँखों से झलकता हुआ बरसात का आलम,

वो नज़रों ही नज़रों में सवालात की दुनिया,
वो आँखों ही आँखों में जवाबात का आलम,




ग़ज़ल - नज़र वो है 
गायक - जगजीत सिंह 


नज़र वो है के जो कौन-ओ-मकां के पार हो जाये,
मगर जब रू-ए-ताबां पर पड़े बेकार हो जाये,

नज़र उस हुस्न पर ठहरे तो आख़िर किस तरह ठहरे,
कभी जो फूल बन जाये कभी रुख़सार हो जाये,

चला जाता हूं हंसता खेलता मौज-ए-हवादिस से,
अगर आसानियां हों ज़िंदगी दुशवार हो जाये,




मेराज-ए-गज़ल

Movie/Album: मेराज-ए-गज़ल (1983)
Music By: गुलाम अली
Lyrics By: नासिर काज़मी
Performed By: गुलाम अली, आशा भोंसले

दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ, वो शक़्ल तो दिखा गया

वो दोस्ती तो ख़ैर अब नसीब-ए-दुश्मनाँ हुई
वो छोटी छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया
दयार-ए-दिल की…

जुदाइयों के ज़ख़्म, दर्द-ए-ज़िन्दगी ने भर दिये
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया
दयार-ए-दिल की…

ये सुबहो की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया
दयार-ए-दिल की…

ये किस ख़ुशी की रेत पर ग़मों को नींद आ गई
वो लहर किस तरफ़ गई ये मैं कहाँ चला गया
दयार-ए-दिल की…

पुकारती हैं फ़ुर्सतें कहाँ गईं वो सोहबतें
ज़मीं निगल गई उन्हें या आसमान खा गया
दयार-ए-दिल की…

गए दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलक
अलम्कशो उठो कि आफ़ताब सर पे आ गया
दयार-ए-दिल की…

सर्दियाँ

छत हुई बातून वातायन मुखर हैं
सर्दियाँ हैं।

एक तुतला शोर
सड़कें कूटता है
हर गली का मौन
क्रमशः टूटता है
बालकों के खेल घर से बेख़बर हैं
सर्दियाँ हैं।

दोपहर भी
श्वेत स्वेटर बुन रही है
बहू बुड्ढी सास का दुःख
सुन रही है
बात उनकी और है जो हमउमर हैं
सर्दियाँ हैं।

चाँदनी रातें
बरफ़ की सिल्लियाँ हैं
ये सुबह, ये शाम
भीगी बिल्लियाँ हैं
साहब दफ़्तर में नहीं हैं आज घर हैं
सर्दियाँ हैं।

- कुँअर बेचैन

तुम्हारी पलकों का कँपना

तुम्हारी पलकों का कँपना ।
तनिक-सा चमक खुलना, फिर झँपना ।
तुम्हारी पलकों का कँपना ।

मानो दीखा तुम्हें किसी कली के
खिलने का सपना ।
तुम्हारी पलकों का कँपना ।

सपने की एक किरण मुझको दो ना,
है मेरा इष्ट तुम्हारे उस सपने का कण होना,
और सब समय पराया है
बस उतना क्षण अपना ।

तुम्हारी
पलकों का कँपना ।

 - अज्ञेय 

आमिर मिनाई के तीन ग़ज़ल

ग़ज़ल - ना शौक़ ए वस्ल का दावा ना ज़ौक ए आश्नाई का 
गायक - रफ़ी 

ना शौक़ ए वस्ल का दावा ना ज़ौक ए आश्नाई का
ना इक नाचीज़ बन्दा और उसे दावा ख़ुदाई का

कफ़स में हूँ मगर सारा चमन आँखों के आगे है
रिहाई के बराबर अब तस्सव्वुर है रिहाई का

नया अफ़साना कह वाइज़ तो शायद गर्म हो महफ़िल
क़यामत तो पुराना हाल है रोज़ ए जुदाई का

बहार आई है अब अस्मत का पर्दाफ़ाश होता है
जुनूं का हाथ है आज और दामन पारसाई का





ग़ज़ल - सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता  
गायक - जगजीत सिंह 

सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता-आहिस्ता

जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
हया यकलख़त आई और शबाब आहिस्ता-आहिस्ता

शब-ए-फ़ुर्कत का जागा हूँ फ़रिश्तों अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता-आहिस्ता

सवाल-ए-वस्ल पर उन को अदू का ख़ौफ़ है इतना
दबे होंठों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता

हमारे और तुम्हारे प्यार में बस फ़र्क़ है इतना
इधर तो जल्दी जल्दी है उधर आहिस्ता आहिस्ता

वो बेदर्दी से सर काटे 'अमीर' और मैं कहूँ उन से
हुज़ूर आहिस्ता-आहिस्ता जनाब आहिस्ता-आहिस्ता





ग़ज़ल - जब से बुलबुल तूने दो तिनके लिये 

जब से बुलबुल तूने दो तिनके लिये
टूटती है बिजलियाँ इनके लिये

है जवानी ख़ुद जवानी का सिंगार
सादगी गहना है उस सिन के लिये

कौन वीराने में देखेगा बहार
फूल जंगल में खिले किनके लिये

सारी दुनिया के हैं वो मेरे सिवा
मैंने दुनिया छोड़ दी जिन के लिये

बाग़बाँ कलियाँ हों हल्के रंग की
भेजनी हैं एक कमसिन के लिये

सब हसीं हैं ज़ाहिदों को नापसन्द
अब कोई हूर आयेगी इनके लिये

वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिये

हे मेरी तुम / केदारनाथ अग्रवाल

1.

लिपट गयी जो धूल
लिपट गयी जो धूल पांव से
वह गोरी है इसी गांव की
जिसे उठाया नहीं किसी ने
इस कुठांव से।
ऐसे जैसे किरण
ओस के मोती छू ले
तुम मुझको
चुंबन से छू लो
मैं रसमय हो जाऊँ!

2.

तुम भी कुछ हो
तुम भी कुछ हो
लेकिन जो हो,
वह कलियों में
रूप-गन्ध की लगी गांठ है
जिसे उजाला
धीरे धीरे खोल रहा है।
यह जो
नग दिये के नीचे चुप बैठा है,
इसने मुझको
काट लिया है,
इस काटे का मंत्र तुम्हारे चुंबन में है,
तुम चुंबन से
मुझे जिला दो।

3.

वह चिड़िया जो-
चोंच मार कर
दूध-भरे जुंडी के दाने
रुचि से, रस से खा लेती है
वह छोटी संतोषी चिड़िया
नीले पंखों वाली मैं हूँ
मुझे अन्‍न से बहुत प्‍यार है।


वह चिड़िया जो-
कंठ खोल कर
बूढ़े वन-बाबा के खातिर
रस उँडेल कर गा लेती है
वह छोटी मुँह बोली चिड़िया
नीले पंखों वाली मैं हूँ
मुझे विजन से बहुत प्‍यार है।


वह चिड़िया जो-
चोंच मार कर
चढ़ी नदी का दिल टटोल कर
जल का मोती ले जाती है
वह छोटी गरबीली चिड़िया
नीले पंखों वाली मैं हूँ
मुझे नदी से बहुत प्‍यार है।


4.

एक खिले फूल से
झाड़ी के एक खिले फूल ने
नीली पंखुरियों के
एक खिले फूल ने
आज मुझे काट लिया
ओठ से,
और मैं अचेत रहा
धूप में

रोटी और संसद - धूमिल

एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ--
'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
मेरे देश की संसद मौन है।

2.

शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज़ है या
मिट्टी में गिरे हुए ख़ून
का रंग।


लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
घोड़े से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।

मातृभाषा



जैसे चीटियाँ लौटती हैं
बिलों में
कठफोड़वा लौटता है
काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई अड्डे की ओर

ओ मेरी भाषा
मैं लौटता हूँ तुममें
जब चुप रहते रहते
अकड़ जाती है मेरी जीभ
दुखने लगती है मेरी आत्मा

             -केदारनाथ सिंह