द बेस्ट ऑफ़ ग़ज़ल - दाग देहलवी

तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था - गुलाम अली 

तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था
न था रक़ीबतो आख़िर वो नाम किस का था

वो क़त्ल कर के हर किसी से पूछते हैं
ये काम किस ने किया है ये काम किस का था

वफ़ा करेंगे ,निबाहेंगे, बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था

रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
मुक़ीम कौन हुआ है मुक़ाम किस का था

न पूछ-ताछ थी किसी की वहाँ न आवभगत
तुम्हारी बज़्म में कल एहतमाम किस का था

हमारे ख़त के तो पुर्जे किए पढ़ा भी नहीं
सुना जो तुम ने बा-दिल वो पयाम किस का था

इन्हीं सिफ़ात से होता है आदमी मशहूर
जो लुत्फ़ आप ही करते तो नाम किस का था

तमाम बज़्म जिसे सुन के रह गई मुश्ताक़
कहो, वो तज़्किरा-ए-नातमाम किसका था

गुज़र गया वो ज़माना कहें तो किस से कहें
ख़याल मेरे दिल को सुबह-ओ-शाम किस का था

अगर्चे देखने वाले तेरे हज़ारों थे
तबाह हाल बहुत ज़ेरे-बाम किसका था

हर इक से कहते हैं क्या 'दाग़' बेवफ़ा निकला
ये पूछे इन से कोई वो ग़ुलाम किस का था





लुत्फ़ इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है - फरीदा ख़ानुम 

लुत्फ़ इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
रंज भी इतने उठाए हैं कि जी जानता है
जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने
तूने दिल इतने दुखाए हैं कि जी जानता है
तुम नहीं जानते अब तक ये तुम्हारे अंदाज़
वो मेरे दिल में समाए हैं कि जी जानता है

इन्हीं क़दमों ने तुम्हारे इन्हीं क़दमों की क़सम
ख़ाक में इतने मिलाए हैं कि जी जानता है

दोस्ती में तेरी दरपर्दा हमारे दुश्मन
इस क़दर अपने पराए हैं कि जी जानता है






पुकारती है ख़ामोशी मेरी फ़ुगां की तरह - हेमलता 

पुकारती है ख़ामोशी मेरी फ़ुगां की तरह
निगाहें कहती हैं सब राज़-ए-दिल ज़ुबां की तरह

जला के दाग़-ए-मुहब्बत ने दिल को ख़ाक किया
बहार आई मेरे बाग में ख़िज़ां की तरह

तलाश-ए-यार में छोड़ी न सर-ज़मीं कोई
हमारे पांव में चक्कर हैं आसमां की तरह

अदा-ए-मत्लब-ए-दिल हमसे सीख जाए कोई
उन्हें सुना ही दिया हाल दास्तां की तरह





ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया - गुलाम अली 

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूठी क़सम से आप का ईमान तो गया

दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उल्टी शिकायतें रही एहसान तो गया

अफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ में गो जिल्लतें हुईं
लेकिन उसे जता तो दिया, जान तो गया

देखा है बुतकदे में जो ऐ शेख कुछ न पूछ
ईमान की तो ये है कि ईमान तो गया

डरता हूँ देख कर दिल-ए-बेआरज़ू को मैं
सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया

क्या आई राहत आई जो कुंज-ए-मज़ार में
वो वलवला वो शौक़ वो अरमान तो गया

गो नामाबर से कुछ न हुआ पर हज़ार शुक्र
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया

बज़्म-ए-उदू में सूरत-ए-परवाना मेरा दिल
गो रश्क़ से जला तेरे क़ुर्बान तो गया

होश-ओ-हवास-ओ-ताब-ओ-तवाँ 'दाग़' जा चुके
अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया




ग़ज़ब किया, तेरे वादे पे ऐतबार किया - मेहँदी हसन 

ग़ज़ब किया, तेरे वादे पे ऐतबार किया
तमाम रात क़यामत का इन्तज़ार किया

हंसा हंसा के शब-ए-वस्ल अश्क-बार किया
तसल्लिया मुझे दे-दे के बेकरार किया

हम ऐसे मह्व-ए-नज़ारा न थे जो होश आता
मगर तुम्हारे तग़ाफ़ुल ने होशियार किया

फ़साना-ए-शब-ए-ग़म उन को एक कहानी थी
कुछ ऐतबार किया और कुछ ना-ऐतबार किया

ये किसने जल्वा हमारे सर-ए-मज़ार किया
कि दिल से शोर उठा, हाए! बेक़रार किया

तड़प फिर ऐ दिल-ए-नादां, कि ग़ैर कहते हैं
आख़िर कुछ न बनी, सब्र इख्तियार किया

भुला भुला के जताया है उनको राज़-ए-निहां
छिपा छिपा के मोहब्बत के आशकार किया

तुम्हें तो वादा-ए-दीदार हम से करना था
ये क्या किया कि जहाँ के उम्मीदवार किया

ये दिल को ताब कहाँ है कि हो मालन्देश
उन्हों ने वादा किया हम ने ऐतबार किया

न पूछ दिल की हक़ीकत मगर ये कहते हैं
वो बेक़रार रहे जिसने बेक़रार किया

कुछ आगे दावर-ए-महशर से है उम्मीद मुझे
कुछ आप ने मेरे कहने का ऐतबार किया





न जाओ हाल-ए-दिल-ए-ज़ार देखते जाओ - ताहिरा सायेद 

न जाओ हाल-ए-दिल-ए-ज़ार देखते जाओ
कि जी न चाहे तो नाचार देखते जाओ

बहार-ए-उमर् में बाग़-ए-जहाँ की सैर करो
खिला हुआ है ये गुलज़ार देखते जाओ

उठाओ आँख, न शरमाओ ,ये तो महिफ़ल है
ग़ज़ब से जानिब-ए-अग़यार देखते जाओ

हुआ है क्या अभी हंगामा अभी कुछ होगा
फ़ुगां में हश्र के आसार देखते जाओ

तुम्हारी आँख मेरे दिल से बेसबब-बेवजह
हुई है लड़ने को तय्यार देखते जाओ

न जाओ बंद किए आँख रहरवान-ए-अदम
इधर-उधर भी ख़बरदार देखते जाओ 

कोई न कोई हर इक शेर में है बात ज़रूर
जनाबे-दाग़ के अशआर देखते जाओ

नीलकमल (1968)

फिल्म - नीलकमल 
गाना - मेरे रोम रोम में बसने वाले राम 
गीतकार : साहिर लुधियानवी
गायक : आशा भोसले
संगीतकार : रवी 

हे रोम रोम में बसनेवाले राम
हे रोम रोम में बसनेवाले राम
जगत के स्वामी, हे अंतर्यामी, मैं तुझसे क्या माँगू
मैं तुझसे क्या माँगू
हे रोम रोम में बसनेवाले राम

आस का बंधन तोड़ चुकी हूँ
तुझपर सबकुछ छोड़ चुकी हूँ
आस का बंधन तोड़ चुकी हूँ
तुझपर सबकुछ छोड़ चुकी हूँ
नाथ मेरे मैं क्यो कुछ सोचू
नाथ मेरे मैं क्यो कुछ सोचू
 तू जाने तेरा काम
जगत के स्वामी, हे अंतर्यामी, मैं तुझसे क्या माँगू
मैं तुझसे क्या माँगू
हे रोम रोम में बसनेवाले राम

तेरे चरण की धूल जो पाये
वो कंकर हीरा हो जाये
तेरे चरण की धूल जो पाये
वो कंकर हीरा हो जाये
भाग मेरे जो मैने पाया, इन चरणों में धाम
जगत के स्वामी, हे अंतर्यामी, मैं तुझसे क्या माँगू
मैं तुझसे क्या माँगू
हे रोम रोम में बसनेवाले राम

भेद तेरा कोई क्या पहचाने
जो तुझसा हो, वो तुझे जाने
भेद तेरा कोई क्या पहचाने
जो तुझसा हो, वो तुझे जाने
तेरे किये को हम क्या देवे
तेरे किये को हम क्या देवे
भले बुरे का नाम
जगत के स्वामी, हे अंतर्यामी, मैं तुझसे क्या माँगू
मैं तुझसे क्या माँगू
हे रोम रोम में बसनेवाले राम
जगत के स्वामी, हे अंतर्यामी, मैं तुझसे क्या माँगू
मैं तुझसे क्या माँगू
हे रोम रोम में बसनेवाले राम

यूट्यूब पर देखें 

फिल्म - नीलकमल 
गाना - तुझको पुकारे मेरा प्यार 
गीतकार : साहिर लुधियानवी
गायक : मोहम्मद राफी 
संगीतकार : रवी 

आजा तूझको पुकारे मेरा प्यार

आजा, मैं तो मिटा हूँ तेरी चाह में
तुझको पुकारे मेरा प्यार

दोनो जहाँ की भेंट चढ़ा दी मैने राह में तेरी
अपने बदन की खाक़ मिला दी मैने आह में तेरी
अब तो चली आ इस पार
आजा मैं तो मिटा हूँ ...

इतने युगों से इतने दुखों को कोई सह ना सकेगा
मेरी क़सम मुझे तू है किसीकी कोई कह ना सकेगा
मुझसे है तेरा इक़रार
आजा, मैं तो मिटा हूँ ...

आखिरी पल है आखिरी आहें तुझे ढूँढ रही हैं
डूबती साँसें बुझती निगाहें तुझे ढूँढ रही हैं
सामने आजा एक बार
आजा, मैं तो मिटा हूँ ...

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फिल्म - नीलकमल 
गाना - बाबुल की दुआयें लेती जा  
गीतकार : साहिर लुधियानवी
गायक : मोहम्मद राफी 
संगीतकार : रवी 

बाबुल की दुआयें लेती जा, जा तुझ को सुखी संसार मिले 
मयके की कभी ना याद आए, ससुराल में इतना प्यार मिले 

 नाज़ों से तुझे पाला मैंने, कलियों की तरह फूलों की तरह 
बचपन में झुलाया हैं तुझको, बाहों ने मेरी झुलों की तरह 
मेरे बाग की ऐ नाज़ूक डाली, तुझे हरपल नयी बहार मिले 

जिस घर से बँधे हैं भाग तेरे, उस घर में सदा तेरा राज रहे 
होठों पे हँसी की धूप खिले, माथे पे खुशी का ताज रहे 
कभी जिसकी ज्योत ना हो फ़िकी, तुझे ऐसा रूप सिंगार मिले 

बीते तेरे जीवन की घड़ीयां, आराम की ठंडी छाँव में 
कांट़ा भी ना चुभने पाये कभी, मेरी लाडली तेरे पाँव में 
उस द्वार से भी दुःख दूर रहे, जिस द्वार से तेरा द्वार मिले


दो बदन(1966)

फ़िल्म-दो बदन (1966)
संगीतकार- रवि
गीतकार-शक़ील 
गायक- लता मंगेशकर

लो आ गयी उनकी याद, वो नहीं आये
लो आ गयी उनकी याद, वो नहीं आये

दिल उनको ढूँढता  हैं, ग़म का  सिंगार कर के
आँखें भी थक गयी हैं, अब इंतज़ार कर के
आँखें भी थक गयी हैं, अब इंतज़ार कर के
इक साँस रह गयी है, वो भी न टूट जाये
लो आ गयी उनकी याद, वो नहीं आए

रोती  हैं आज हम पर , तनहाइयाँ हमारी
रोती  हैं आज हम पर , तनहाइयाँ हमारी
वो भी न पाये शायद, परछाइयाँ हमारी
बढ़ते ही जा रहे हैं, मायूसियों के साये
लो आ गयी उनकी याद वो नहीं आए

लौ थरथरा रही है, अब शम्म--ज़िंदगी  की
उजड़ी हुई मुहब्बत, महमाँ है दो घड़ी की
उजड़ी हुई मुहब्बत, महमाँ है दो घड़ी की
मर कर ही अब मिलेंगे, जी कर तो मिल न पाये
लो आ गयी उनकी याद वो नहीं आए
लो आ गयी उनकी याद वो नहीं आए
फ़िल्म-दो बदन (1966)
गाना - जब चली ठंडी हवा 
संगीतकार- रवि
गीतकार-शक़ील 

गायक- आशा भोंसले 


जब चली ठंडी हवा, जब उठी काली घटा
मुझको ऐ जान-ए-वफ़ा तुम याद आए

जिन्दगी की दास्तां, चाहे कितनी हो हसीं
 बिन तुम्हारे कुछ नहीं
क्या मजा आता सनम, आज भूले से कही
तुम भी आ जाते यही

ये बहारें ये फिज़ा, देखकर ओ दिलरुबा
जाने क्या दिल को हुआ, तुम याद आये
 ये नज़ारे ये समा और फिर इतने जवाँ
 हाए रे ये मस्तियाँ
ऐसा लगता है मुझे जैसे तुम नजदीक हो
इस चमन से जान-ए-जाँ
 सुन के पी पी की सदा,
दिल धड़कता है मेरा आज पहले से सिवा,
तुम याद आये

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फ़िल्म-दो बदन (1966)
गाना - रहा गर्दिशों में हरदम  
संगीतकार- रवि
गीतकार-शक़ील 

गायक- मोहम्मद रफ़ी  


रहा गर्दिशों में हरदम, मेरे इश्क का सितारा 
कभी डगमगाई कश्ती, कभी खो गया किनारा 

 कोई दिल के खेल देखे, के मोहब्बतो की बाजी 
वो कदम कदम पे जीते, मैं कदम कदम पे हारा 

 ये हमारी बदनसीबी जो नहीं तो और क्या है 
के उसीके हो गये हम, जो ना हो सका हमारा 

पड़े जब ग़मों से पाले, रहे मिटके मिटनेवाले 
जिसे मौत ने ना पूछा, उसे जिन्दगी ने मारा


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वो भूली दास्तां, लो फिर याद आ गयी


फिल्म-संजोग 
संगीतकार- मदन मोहन
गीतकार-राजेन्द्र कृष्ण 
गायक- लता मंगेशकर

वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई
वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई
नज़र के सामने घटा सी छा गयी
नज़र के सामने घटा सी छा गयी
वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गयी

कहाँ से फिर चले आये, ये  कुछ भटके हुए साये
ये कुछ भूले हुए नग़मे, जो मेरे प्यार ने गाये
ये कुछ बिछुड़ी हुई यादें, ये कुछ टूटे हुए सपने 
पराये हो गये तो क्या, कभी ये भी तो थे अपने
न जाने इनसे क्यों मिलकर, नज़र शर्मा गयी
वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गयी

उम्मीदों के हंसी मेले, तमन्नाओं के वो रेले
निगाहों ने निगाहों से, अजब कुछ खेल से खेले
हवा में ज़ुल्फ़ लहराई, नज़र पे बेखुदी छाई
खुले थे दिल के दरवाज़े, मुहब्बत भी चली आई
तमन्नाओं की दुनिया पर, जवानी छा गयी
वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गयी

बड़े रंगीन ज़माने थे, तराने ही तराने थे
मगर अब पूछता है दिल, वो दिन थे या फ़साने थे
फ़क़त इक याद है बाकी, बस इक फ़रियाद है बाकी
वो खुशियाँ लुट गयी लेकिन, दिल--बरबाद है बाकी
कहाँ थी ज़िन्दगी मेरी, कहाँ पर आ गयी


वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई

नज़र के सामने घटा सी छा गयी
नज़र के सामने घटा सी छा गयी
वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गयी
वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गयी



फिल्म-संजोग 
संगीतकार- मदन मोहन
गीतकार-राजेन्द्र कृष्ण 
गायक- लता मंगेशकर, मुकेश 


एक मंजिल राही दो फिर प्यार ना कैसे हो
 साथ मिले जब दिल को फिर प्यार ना कैसे हो 

 हम भी वो ही हैं, दिल भी वो ही हैं, धड़कन मगर नई हैं 
 देखो तो मीत, आँखों में प्रीत, क्या रंग भर गयी हैं निकले हैं 

धून में, अपनी लगन में मंजिल बुला रही हैं 
 ठंडी हवा भी अब तो मिलन के नग्मे सुना रही हैं 

 देखो वो फूल, दुनियाँ से दूर, आकर कहा खिला हैं 
 मेरी तरह ये खुश हैं जरूर इसको भी कुछ मिला हैं


फिल्म-संजोग 
संगीतकार- मदन मोहन
गीतकार-राजेन्द्र कृष्ण 
गायक- लता मंगेशकर

बदली से निकला है
चाँद परदेसी पिया लौट के तू घर आजा 

 पूछे पता तेरा ठंडी हवायें 
 चुप मुझे देख के चुप हो जाये 
 लाये तो कैसे तुझे ढूँढ के लाये 

 आ के गुजर गयी कितनी बहारें 
 और बरस गयी कितनी पुहारें 
 आ जा तुझे हम कब से पुकारे

भाई बहन - गोपाल सिंह नेपाली

तू चिंगारी बनकर उड़ री, जाग-जाग मैं ज्वाल बनूँ,
तू बन जा हहराती गँगा, मैं झेलम बेहाल बनूँ,
आज बसन्ती चोला तेरा, मैं भी सज लूँ लाल बनूँ,
तू भगिनी बन क्रान्ति कराली, मैं भाई विकराल बनूँ,
यहाँ न कोई राधारानी, वृन्दावन, बंशीवाला,
...तू आँगन की ज्योति बहन री, मैं घर का पहरे वाला ।

बहन प्रेम का पुतला हूँ मैं, तू ममता की गोद बनी,
मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी,
मैं भाई फूलों में भूला, मेरी बहन विनोद बनी,
भाई की गति, मति भगिनी की दोनों मंगल-मोद बनी
यह अपराध कलंक सुशीले, सारे फूल जला देना ।
जननी की जंजीर बज रही, चल तबियत बहला देना ।

भाई एक लहर बन आया, बहन नदी की धारा है,
संगम है, गँगा उमड़ी है, डूबा कूल-किनारा है,
यह उन्माद, बहन को अपना भाई एक सहारा है,
यह अलमस्ती, एक बहन ही भाई का ध्रुवतारा है,
पागल घडी, बहन-भाई है, वह आज़ाद तराना है ।
मुसीबतों से, बलिदानों से, पत्थर को समझाना है ।

रात फिर आएगी, फिर ज़ेहन के दरवाज़े पर - ज़फ़र इक़बाल

1.

रात फिर आएगी, फिर ज़ेहन के दरवाज़े पर
कोई मेहँदी में रचे हाथ से दस्तक देगा

धूप है, साया नहीं आँख के सहरा में कहीं
दीद का काफिला आया तो कहाँ ठहरेगा

आहट आते ही निगाहों को झुका लो कि उसे
देख लोगे तो लिपटने को भी जी चाहेगा

2,

यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला
किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला

ग़ज़ाल-ए-अश्क सर-ए-सुब्ह दूब-ए-मिज़गाँ पर
कब आँख अपनी खुली और लहू लहू न मिला

चमकते चाँद भी थे शहर-ए-शब के ऐवाँ में
निगार-ए-ग़म सा मगर कोई शम्मा-रू न मिला

उन्ही की रम्ज़ चली है गली गली में यहाँ
जिन्हें उधर से कभी इज़्न-ए-गुफ़्तुगू न मिला

फिर आज मय-कदा-ए-दिल से लौट आए हैं
फिर आज हम को ठिकाने का हम-सबू न मिला

3.

ख़ुशी मिली तो ये आलम था बद-हवासी का
के ध्यान ही न रहा ग़म की बे-लिबासी का

चमक उठे हैं जो दिल के कलस यहाँ से अभी
गुज़र हुआ है ख़यालों की देव-दासी का

गुज़र न जा यूँही रुख़ फेर कर सलाम तो ले
हमें तो देर से दावा है रू-शनासी का

ख़ुदा को मान के तुझ लब के चूमने के सिवा
कोई इलाज नहीं आज की उदासी का

गिरे पड़े हुए पत्तों में शहर ढूँढता है
अजीब तौर है इस जंगलों के बासी का

4.

खींच लाई है यहाँ लज़्ज़त-ए-आज़ार मुझे
जहाँ पानी न मिले आज वहाँ मार मुझे

धूप ज़ालिम ही सही जिस्म तवाना है अभी
याद आएगा कभी साया-ए-अश्जार मुझे

साल-हा-साल से ख़ामोश थे गहरे पानी
अब नज़र आए हैं आवाज़ के आसार मुझे

बाग़ की क़ब्र पे रोते हुए देखा था जिसे
नज़र आया वही साया सर-ए-दीवार मुझे

गिर के सद पारा हुआ अब्र में अटका हुआ चाँद
सर पे चादर सी नज़र आई शब-ए-तार मुझे

साँस में था किसी जलते हुए जंगल का धुवाँ
सैर-ए-गुलज़ार दिखाते रहे बे-कार मुझे

रात के दश्त में टूटी थी हवा की ज़ंजीर
सुब्ह महसूस हुई रेत की झंकार मुझे

वही जामा के मेरे तन पे न ठीक आता था
वही इनाम मिला आक़िबत-ए-कार मुझे

जब से देखा है 'ज़फर' ख़्वाब-ए-शाबिस्तान-ए-ख़याल
बिस्तर-ए-ख़ाक पे सोना हुआ दुश्वार मुझे

जहाँ मेरे न होने का निशाँ फैला हुआ है
समझता हूँ ग़ुबार-ए-आसमाँ फैला हुआ है

मैं इस को देखने और भूल जाने में मगन हूँ
मेरे आगे जो ये ख़्वाब-ए-रवाँ फैला हुआ है

इन्ही दो हैरतों के दरमियाँ मौजूद हूँ मैं
सर-ए-आब-ए-यक़ीं अक्स-ए-गुमाँ फैला हुआ है

रिहाई की कोई सूरत निकलनी चाहिए अब
ज़मीं सहमी हुई है और धुवाँ फैला हुआ है

कोई अंदाज़ा कर सकता है क्या इस का के आख़िर
कहाँ तक साया-ए-अहद-ए-ज़ियाँ फैला हुआ है

कहाँ डूबे किधर उभरे बदन की नाव देखें
के इतनी दूर तक दरिया-ए-जाँ फैला हुआ है


मैं दिल से भाग कर जा भी कहाँ सकता हूँ आख़िर
मेरे हर सू ये दश्त-ए-बे-अमाँ फैला हुआ है

मुझे कुछ भी नहीं मालूम और अन्दर ही अन्दर
लुहू में एक दस्त-ए-राएगाँ फैला हुआ है

'ज़फ़र' अब के सुख़न की सर-ज़मीं पर है ये मौसम
बयाँ ग़ाएब है और रंग-ए-बयाँ फैला हुआ है

सोचता हूँ ज़हन के सारे दरीचे खोल दूँ - ज़ैदी जाफ़र रज़ा


1.

सोचता हूँ ज़हन के सारे दरीचे खोल दूँ
गुलशने-इद्राक के खुशरू बगीचे खोल दूँ
जज़्बए-दिल के तिलिस्माती गलीचे खोल दूँ
और मैं यौमे-विलादत पर तुम्हारे क्या करूं?

याद हैं जितनी दुआएं सब की सब दे दूँ तुम्हें
क़ल्ब की बालीदगी से एक टक देखूँ तुम्हें
हो बदल मुमकिन न जिसका, इस तरह चाहूँ तुम्हें
और मैं यौमे-विलादत पर तुम्हारे क्या करूं ?

जानता हूँ मैं, अभी तुम हो फ़क़त इक साल के
भर दूँ आंखों में तुम्हारी, रंग इस्तक्लाल के
तुम सरापा बन सको पैकर, हसीं अफआल के
और मैं यौमे-विलादत पर तुम्हारे क्या करूँ ?

कम मैं कर सकता नहीं जुग्राफियाई फ़ासले
चाह कर भी तय करूं कैसे फिज़ाई फ़ासले
ख़त्म कर देगी तुम्हारी खुश-अदाई, फ़ासले
और मैं यौमे-विलादत पर तुम्हारे क्या करूं ?


आते हैं ऐसे भी लम्हे, जबके फरते-जोश में
भींच लेता हूँ ख़यालों में तुम्हें आगोश में
ये जुनूँ की कैफ़ियत होती है, पूरे होश में
और मैं यौमे-विलादत पर तुम्हारे क्या करूं ?


ढाल कर अल्फाज़ में गूँ-गाँ को खुश होता हूँ मैं
देख कर खुश-खुश तुम्हारी माँ को खुश होता हूँ मैं
पुर-मसर्रत पा के लख्ते-जाँ को खुश होता हूँ मैं
और मैं यौमे-विलादत पर तुम्हारे क्या करूं ?


मुस्कुराते गुल-अदा रुखसार आओ चूम लूँ
चाहता है दिल के जब भी खिलखिलाओ चूम लूँ
लब तुम्हारे हैं बहोत खुशरंग, लाओ चूम लूँ
और मैं यौमे-विलादत पर तुम्हारे क्या करूं ?


गौर से देखो, तुम्हारे सामने मैं हूँ खड़ा
केक मुंह में रखदो अपने हाथ से, मैं हूँ खड़ा
लो मुबारकबाद मेरे लाडले, मैं हूँ खड़ा
और मैं यौमे-विलादत पर तुम्हारे क्या करूं ?


प्यार होता है इबादत, प्यार देता हूँ तुम्हें
अपने ख़्वाबों का हसीं गुलज़ार देता हूँ तुम्हें
दिल से जो निकले हैं वो अशआर देता हूँ तुम्हें
और मैं यौमे-विलादत पर तुम्हारे क्या करूँ ?


जार को बिचार कहा गनिका को लाज कहा - टोडर


जार को बिचार कहा गनिका को लाज कहा ,
गदहा को पान कहा आँधरे को आरसी ।

निगुनी को गुन कहा दान कहा दारिदी को ,
सेवा कहा सूम को अरँडन की डार सी ।

मदपी की सुचि कहा साँच कहा लम्पट को,
नीच को बचन कहा स्यार की पुकार सी ।

टोडर सुकवि ऎसे हठी ते न टारे टरे ,
भावै कहो सूधी बात भावै कहो फारसी ।

हर तरफ धुआं है / धूमिल

हर तरफ धुआं है
हर तरफ कुहासा है
जो दांतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है


अंधकार में सुरक्षित होने का नाम है-
तटस्थता। यहां
कायरता के चेहरे पर
सबसे ज्यादा रक्त है।
जिसके पास थाली है
हर भूखा आदमी
उसके लिए, सबसे भद्दी
गाली है


हर तरफ कुआं है
हर तरफ खाईं है
यहां, सिर्फ, वह आदमी, देश के करीब है
जो या तो मूर्ख है
या फिर गरीब है