मकर संक्रांति - एक कविता


आज मकर संक्रांति के मौके पर आपको सुनाते हैं सलिल वर्मा की लिखी कविता "मकर संक्रांति", जो उन्होंने साल 2002 में अपने दुबई प्रवास के समय लिखी थी. शायद घर से बहार रह रहे सभी लोगो के मन का हाल बयां करती है यह कविता.



सूरज ने मकर राशि में दाखिल होकर
मकर संक्रांति के आने की दी खबर
ईंटों के शहर में
आज बहुत याद आया अपना घर.

गन्ने के रस के उबाल से फैलती हर तरफ
सोंधी-सोंधी वो गुड की वो महँक
कूटे जाते हुए तिल का वो संगीत
साथ देते बेसुरे कंठों का वो सुरीला गीत.

गंगा स्नान और खिचड़ी का वो स्वाद,
रंगीन पतंगों से भरा आकाश
जोश भरी "वोक्काटा" की गूँज
सर्दियों को अलविदा कहने की धूम.

अब तुम्हारा साथ ही त्यौहार जैसा लगता है
तुम्हारे आँखों की चमक दीवाली जैसी
और प्यार के रंगों में होली दिखती है
तुम्हारे गालों का वो काला तिल
जब तुम्हारे होठों के गुड की मिठास में घुलता है
वही दिन मकर-संक्रांति का होता है!
वही दिन मकर-संक्रांति का होता है!!  

 - सलिल वर्मा 


New Year Special | New Year Poems | नए साल की कवितायें

इस नए साल आईये पढ़ते हैं कुछ कवितायें जो कि ख़ास नए साल के लिए लिखे गए हैं..

New Year Hindi Poem

नया साल - केदारनाथ अगरवाल 

गए साल की 
ठिठकी ठिठकी ठिठुरन
नए साल के
नए सूर्य ने तोड़ी।


देश-काल पर,
धूप-चढ़ गई,
हवा गरम हो फैली,
पौरुष के पेड़ों के पत्ते
चेतन चमके।


दर्पण-देही
दसों दिशाएँ
रंग-रूप की
दुनिया बिम्बित करतीं,
मानव-मन में
ज्योति-तरंगे उठतीं।

- केदारनाथ अगरवाल 

मुबारक हो नया साल - नागार्जुन 

मुबारक हो नया साल

फलाँ-फलाँ इलाके में पड़ा है अकाल
खुसुर-पुसुर करते हैं, ख़ुश हैं बनिया-बकाल
छ्लकती ही रहेगी हमदर्दी साँझ-सकाल
--अनाज रहेगा खत्तियों में बन्द !

हड्डियों के ढेर पर है सफ़ेद ऊन की शाल...
अब के भी बैलों की ही गलेगी दाल !
पाटिल-रेड्डी-घोष बजाएँगे गाल...
--थामेंगे डालरी कमंद !

बत्तख हों, बगले हों, मेंढक हों, मराल
पूछिए चलकर वोटरों से मिजाज का हाल
मिला टिकट ? आपको मुबारक हो नया साल
--अब तो बाँटिए मित्रों में कलाकंद !

- नागार्जुन 

यकुम जनवरी है नया साल है - आमिर 'कजलबश'

यकुम जनवरी है नया साल है
दिसंबर में पूछूँगा क्या हाल है

बचाए ख़ुदा शर की ज़द से उसे
बे-चारा बहुत नेक-आमाल है

बताने लगा रात बूढ़ा फ़क़ीर
ये दुनिया हमेशा से कंगाल है

है दरिया में कच्चा घड़ा सोहनी
किनारे पे गुमसुम महिवाल है

मैं रहता हूँ हर शाम शिकवा-ब-लब
मेरे पास दीवान-ए-'इक़बाल' है

- 'अमीर' क़ज़लबाश

नया साल - जिया फतेहाबादी 

लोग कहतें हैं साल ख़त्म हुआ
दौर ए रंज ओ मलाल ख़त्म हुआ
इशरतों का पयाम आ पहुँचा
अहद-ए नौ शादकाम आ पहुँचा
गूँजती हैं फ़िज़ाएँ गीतों से
रक्स करते हैं फूल और तारे
मुस्कराती है कायनात तमाम
जगमगाती है कायनात तमाम
मुझ को क्यूँ कर मगर यकीं आए

मेरे दिल को नहीं क़रार अब तक
मेरी आँखें हैं अश्कबार अब तक
हैं मेरे वास्ते वही रातें
क़िस्सा-ए ग़म फ़िराक़ की बातें
आज की रात तुम अगर आओ
अब्र बन कर फ़िज़ा पे छा जाओ
मुझ को चमकाओ अपने जलवे से
दिल को भर दो नई उमंगों से
तो मैं समझूँ कि साल-ए नौ आया

जिया फतेहाबादी

नये साल के लिए - भवानीप्रसाद मिश्र 

कल हमारे चाँद सूरज और तारे
बदल जायेंगे लगेंगे अमित प्यारे
टूट जायेगा हमारा कड़ा घेरा
और होगा मुक्त कल पहला सबेरा
यह सबेरा सार्थक जिस बात से हो
काम वह अपना शुरू इस रात से हो

- भवानीप्रसाद मिश्र 

नवल हर्षमय नवल वर्ष - सुमित्रानंदन पन्त 

नवल हर्षमय नवल वर्ष यह,
कल की चिन्ता भूलो क्षण भर;
लाला के रँग की हाला भर
प्याला मदिर धरो अधरों पर!
फेन-वलय मृदु बाँह पुलकमय
स्वप्न पाश सी रहे कंठ में,
निष्ठुर गगन हमें जितने क्षण
प्रेयसि, जीवित धरे दया कर!

- सुमित्रानंदन पंत

New Year Specials By Mahfil 

1. Poems By Hariwans Rai Bachchan
2. Saal Mubarak - Amrita Preetam
3. Naye Saal Ki Shubhkaamnayen - Sarweshwar Dayal Saxena
4. Other New Year Special Poems 

महफ़िल की ओर से आप सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं !!