कहना उसे - मेहँदी हसन



संगीत : नियाज़ अहमद
शायर : फरहाद शहजाद

खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था


खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था
दहकती आग थी तन्हाई थी फ़साना था

ग़मों ने बाँट लिया है मुझे यूँ आपस में
कि जैसे मैं कोई लूटा हुआ ख़ज़ाना था

जुदा है शाख़ से गुल\-रुत से आशियाने से
कली का जुर्म घड़ी भर का मुस्कुराना था

ये क्या कि चन्द ही क़दमों में थक के बैठ गये
तुम्हें तो साथ मेरा दूर तक निभाना था

मुझे जो मेरे लहू में डबो के गुज़रा है
वो कोई ग़ैर नहीं यार एक पुराना था

ख़ुद अपने हाथ से 'शहज़ाद' उसको काट दिया
कि जिस दरख़्त की टहनी पे आशियाना था




टूटे हुए ख़ाबों के लिये आँख ये तर क्यूँ


टूटे हुए ख़ाबों के लिये आँख ये तर क्यूँ
सोचो तो सही शाम है अंजाम\-ए\-सहर क्यूँ

जो ताज सजाए हुए फिरता हो अनोखा
हालात के क़दमों पे झुकेगा वही सर क्यूँ

सिलते हैं तो सिल जाएं किसे फ़िक़्र लबों की
ख़ुश\-रंग अँधेरों को कहूँगा मैं सहर क्यूँ

सोचा किया मैं हिज्र की दहलीज पे बैठा
सदियों में उतर जाता है लम्हों का सफ़र क्यूँ

हरजाई है 'शहज़ाद' ये तस्लें य पजाना
सोचा भी कभी तुमने हुआ ऐसा मग क्यूँ





देखना उनका कनखियों से इधर देखा किये


देखना उनका कनखियों से इधर देखा किये
अपनी आह-ए-कम-असर का हम-असर देखा किये

जो ब\-जाहिर हमसे सदियों की मुसाफ़त-बर रहे
हम उन्हें हर गाम अपना हमसफ़र देखा किये

लम्हा लम्हा वक़्त का सैलाब चढ़ता ही गया
रफ़्ता रफ़्ता डूबता हम अपना घर देखा किये

कोई क्या जाने के कैसे हम भरी बरसात में
नज़र-ए-आतिश अपने ही दिल का नगर देखा किये

सुन के वो 'शहज़ाद' के अशआर सर धुनता रहा
थाम कर हम दोनों हाथों से जिगर देखा किये




फ़ैसला तुमको भूल जाने का


फ़ैसला तुमको भूल जाने का
इक नया ख़ाब है दीवाने का

दिल कली का लरज़ लरज़ उठा
ज़िक्र था फिर बहार आने का

हौसला कम किसी में होता है
जीत कर ख़ुद ही हार जाने का

ज़िंदगी कट गई मनाते हुए
अब इरादा है रूठ जाने का

आप शहज़ाद की न फ़िक्र करें
वो तो आदी है ज़ख़्म खाने का





सबके दिल में रहता हूँ पर दिल का आंगन खाली है


सबके दिल में रहता हूँ पर दिल का आंगन खाली है
ख़ुशियाँ बाँट रहा हूँ जग में अपना दामन खाली है

गुल रुत आई कलियाँ चटकीं पत्ती पती मुस्काई
पर एक भँवरा न होने से गुलशन गुलशन खाली है

रंगों का उकताम नहीं हर\-चन्द यहाँ पर जाने क्यूँ
रंग बरंगों तनवारं का सच में ही मन खाली है

दर दर की ठुकराई हुई ऐ महबूबा\-ए\-तनहाई
आ मिल जुल कर रह ले इसमें दिल का नशेमन खाली है





तन्हा तन्हा मत सोचा कर


तन्हा तन्हा मत सोचा कर
मर जाएगा मत सोचा कर

प्यार घड़ी भर का ही बहुत है
झूठा सच्चा मत सोचा कर

जिसकी फ़ितरत ही डँसना हो
वो तो डँसेगा मत सोचा कर

धूप में तन्हा कर जाता है
क्यूँ ये साया मत सोचा कर

अपना आप गँवा कर तूने
क्या पाया है मत सोचा कर

मान मेरे 'शहज़ाद' वगरना
पछताएगा मत सोचा कर





एक बस तू ही नहीं मुझसे ख़फ़ा हो बैठा



एक बस तू ही नहीं मुझसे ख़फ़ा हो बैठा
मैंने जो संग तराशा था ख़ुदा हो बैठा

उठ के मंज़िल ही अगर आये तो शायद कुछ हो
शौक़\-ए\-मंज़िल तो मेरा आब्ला\-पा हो बैठा

मसलह्त छीन ली क़ुव्वत\-ए\-ग़ुफ़्तार मगर
कुछ न कहना ही मेरा मेरी ख़ता हो बैठा

शुक्रिया ऐ मेरे क़ातिल ऐ मसीहा मेरे
ज़हर जो तूने दिया था वो दवा हो बैठा

जान\-ए\-शहज़ाद को मिन\-जुम्ला\-ए\-आदा पा कर
हूक वो उट्ठी कि जी तन से जुदा हो बैठा



क्या टूटा है अन्दर अन्दर चेहरा क्यूँ कुम्हलाया है


क्या टूटा है अन्दर अन्दर चेहरा क्यूँ कुम्हलाया है
क्या टूटा है अन्दर अन्दर क्यूँ चेहरा कुम्हलाया है
तन्हा तन्हा रोने वालो कौन तुम्हें याद आया है

चुपके चुपके सुलग़ रहे थे याद में उनकी दीवाने
इक तारे ने टूट के यारो क्या उनको समझाया है

रंग बिरंगी इस महफ़िल में तुम क्यूँ इतने चुप चुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगो क्या खोया क्या पाया है

शेर कहाँ है ख़ून है दिल का जो लफ़्ज़ों में बिखरा है
दिल के ज़ख़्म दिखा कर हमने महफ़िल को गर्माया है

अब 'शहज़ाद' ये झूठ न बोलो वो इतना बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को भी परखो गर इल्ज़ाम लगाया है'




कोंपलें फिर फूट आईं शाख़ पर कहना उसे


कोंपलें फिर फूट आईं शाख़ पर कहना उसे
वो न समझा है न समझेगा मगर कहना उसे

वक़्त का तूफ़ान हर इक शय बहा कर ले गया
इतनी तन्हा हो गई है रहगुज़र कहना उसे

जा रहा है छोड़ कर तन्हा मुझे जिसके लिये
चैन न दे पायेगा वो सीम\-ओ\-ज़र कहना उसे

रिस रहा हो ख़ून दिल से लब मगर हँसते रहे
कर गया बरबाद मुझको ये हुनर कहना उसे

जिसने ज़ख़्मों से मेरा 'शहज़ाद' सीना भर दिया
मुस्करा कर आज प्यारे चारागर कहना उसे

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