तुम एक गोरखधंधा हो - नुसरत फ़तेह अली खान



शायर : नाज़ खिअलावी 

गायक : नुसरत फ़तेह अली खान


हो भी नहीं और हर जहाँ हो
तुम एक गोरखधंधा हो
हर जर्रे में किस शान से तू जलवानुमा है
हैरान है अक्ल की, तू कैसा है और क्या है
तुझे गेरो हरम में मैंने ढूँढा तू नहीं मिलता
मगर तशरीफ़ फरमा, तुझको अपने दिल में देखा है
तुम एक गोरखधंधा हो

हरमो गैर में है जलवा ए पुर्फन तेरा
दो घरो का है चराग, एक रूखे रोशन तेरा
जब बाजुस तेरे दूसरा कोई मोजूद नहीं
फिर समझ में नहीं आता तेरा पर्दा करना
तुम एक गोरखधंधा हो

जो उल्फत में तुम्हारी खो गया है
उसी खोये हुए को कुछ मिला है
न बुतखाने न काबे में मिला है
मगर टूटे हुए दिल में मिला है
अदम बन कर कही छुप गया है
कहीं तू हस्त बन के आ गया है
नहीं है तू तो फिर इंकार कैसा
नाफीबी तेरे होने का पता है
जिसको कह रहा हूँ अपनी हस्ती
अगर वो तू नहीं तो और क्या है
नहीं आया ख्यालो में अगर तू
तो फिर मैं कैसे समझा तू खुदा है
तुम एक गोरखधंधा हो

हैरान हूँ इस बात पे तुम कौन हो क्या हो
हाथ आओ तो बुत हाथ ना आओ तो खुदा हो
अक्ल में जो गिर गया न इन्तहा क्यों कर हुआ
जो समझ में आ गया फिर वो क्यों कर खुदा हुआ
फ़लसफ़ी को बहस के अंदर खुदा मिलता नहीं
डोर को सुलझा रहा है और सिरा मिलता नहीं
मिलते नहीं हो, सामने आते नहीं हो तुम
जलवा दिखा के, जलवा दिखाते नहीं हो तुम
गैरो हरम के झगडे मिटाते नहीं हो, तुम
जो असल बात है वो बताते नहीं हो, तुम
हैरान हूँ मेरे दिल में समाये हो किस तरह
हालाँकि दो जहाँ में समाते नहीं हो, तुम
ये महा बदो हरम ये खलिसा ओ देर क्यों
हरजाई हो, तभी तो बताते नहीं हो तुम
तुम एक गोरखधंधा हो

दिल पे हैरत ने अजब रंग जमा रखा है
एक उलझी हुई तस्वीर बना रखा है
कुछ समझ में नहीं आता की, ये चक्कर क्या है
खेल तुमने क्या अजल से ये रचा रखा है
रूह को जिस्म के पिंजरे का बना के कैदी
उसपे फिर मौत का पहरा भी बिठा रखा है
देके तदबीर के पंछी को उड़ाने तुमने
नामे तकदीर भी हर शब्द बिछा रखा है
करके आरैसे दो नयन के बरसो तुमने
ख़त्म करने का भी मंसूबा बना रखा है
ला मकानी का बहरहाल है दावा है तुम्हे
नह्लो अकरब का भी पैगाम सुना रखा है
ये बुरे वो भलाई ये जहन्नम वो बहिस्त
इस उलट फेर में फरमाओ तो क्या रखा है
जुर्म आदम ने किया और सजा बेटो को
बदले ओ इन्साफ का मियार भी क्या रखा है
देके इंसान को दुनिया में खलाफत अपनी
एक तमाशा सा ज़माने में बना रखा है
अपनी पहचान की खातिर बनाया सबको
सबकी नज़रों से मगर खुद को छुपा रखा है
तुम एक गोरखधंधा हो

नित नए नक्श बना देते हो, मिटा देते हो
जाने किस जुर्म ए तमन्ना की सजा देते हो
कभी कंकड़ को बना देते हो हीरे की कली
कभी हीरो को भी मिट्टी में मिला देते हो
जिंदगी कितने ही मुर्दों को अत्ता की जिसने
वो मसीहा ही सलीबो पे सजा देते हो
खवाहिशे दीद कर बैठे सरे तुर कोई
खुद ही बर्के तजली से जला देते हो
नारे नमरूद में जलवाते हो खुद अपना खलील
खुद ही फिर नार को गुलज़ार बना देते हो
तुम एक गोरखधंधा हो

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