आँख उठी मोहब्बत ने अंगडाई ली - नुसरत फ़तेह अली खान



शायर : फ़ना बुलंद शहरी 


आँख उठी मोहब्बत ने अंगडाई ली
दिल का सौदा हुआ चाँदनी रात में
उनकी नज़रों ने कुछ ऐसा जादू किया
लुट गए हम तो पहली मुलाकात में

दिल लूट लिया ईमान लूट लिया
खुद तड़प कर उन के जानिब दिल गया
शराब सीक पर डाली, कबाब शीशे में
हम पे ऐसा जादू किया उनकी नज़रों ने...

ज़िन्दगी डूब गयी उनकी हसीं आंखों में
यूँ मेरे प्यार के अफ़साने को अंजाम मिला
कैफियत-ए-चश्म उनकी मुझे याद है सौदा
सागर को मेरा हाथ से लेना के चला मैं

हम होश भी अपना भूल गए
ईमान भी अपना भूल गए
इक दिल ही नहीं उस बज़्म में
हम न जाने क्या क्या भूल गए

जो बात थी उनको कहने की
वो बात ही कहना भूल गए
गैरों के फ़साने याद रहे
हम अपना फ़साना भूल गए

वो आ के आज सामने इस शान से गए
हम देखते ही देखते ईमान से गए
क्या क्या निगाह-ए-यार में तासीर हो गयी
बिजली कभी बनी कभी शमशीर हो गयी

बिगड़ी तो आ बनी दिल-ए-इश्क के जान पर
दिल में उतर गयी तो नज़र तीर हो गयी
महफ़िल में बार बार उन पर नज़र गयी
हमने बचाई लाख मगर फिर उधर गयी

उनकी निगाह में कोई जादू ज़रूर
जिस पर पड़ी उसी के जिगर में उतर गयी
वो मुस्करा कर देखना उनकी तो  थी अदा
हम बेतरह तड़प उठे और जान से गए

आते ही उनके बज़्म में कुछ इस तरह से हुआ
शीशे से रिन्द, शेख भी कुरान से गए
उनकी आँखों का लिए दिल पर असर जाते हैं
मैकदे हाथ बढ़ाते हैं जिधर जाते हैं

भूलते ही नहीं दिल को मेरे मस्ताना निगाह
साथ जाता है ये मैखाना जिधर जाते हैं
उनके अंदाज़ ने मुझको बाखुदा लुट लिया
दे के मजबूर को पैगाम ए वफ़ा लूट लिया

सामना होते ही जो कुछ मिला लूट लिया
क्या बताऊँ कि नजर मिलते ही क्या लुट लिया
नरगसी आँखों ने ईमान मेरा लूट लिया

बन के तस्वीर-ए-गम रह गए हैं
खोये खोये से हम रह गए हैं
बाँट ली सबने आपस में खुशियाँ
मेरे हिस्से में गम रह गए हैं

अब न उठाना सरहाने से मेरे
अब तो गिनती के दम रह गए हैं
दिन कटा जिस तरह कटा
लेकिन रात कटती नज़र नहीं आती

दिल ज़िन्दगी से तंग है, जीने से सेर है
पैमाना भर चूका है छलकने की देर है
काफिला चल के मंजिल पे पहुँचा
ठहरो ठहरो में हम रह गए

देख कर उनके मंगतो की गैरत
दंग अहले-करम रह गए हैं
उन की सत्तारियाँ कुछ न पूछो
आसियों के भ्ररम रह गए हैं

ऐ सबा एक ज़हमत ज़रा फिर
उनकी जुल्फों में हम रह गए हैं
कायनाते जफ़ाओं वफाओं में
एक हम एक तुम रह गए हैं

आज साकी पिला शेख़ को भी
एक ये मोहतरम रह गए हैं
दौर-ए-माजी के तस्वीर आखिर
ऐ नसीब एक हम रह गए हैं

नज़र मिलकर मेरे पास आ के लूट लिया, लूट लिया
खुदा के लिए अपनी नज़रों को रोको, मेरे दिल लूट लिया
जिस तरफ उठ गयी हैं आहें हैं
चश्म ए बद्दूर क्या निगाहें हैं

दिल को उलट पुलट के दिखाने से फायदा
कह तो दिया के बस लूट लिया लूट लिया
है दोस्ती तो जानिब-ए-दुश्मन न देखना
जादू भरा हुआ है तुम्हारी निगाह में

करूँ तारीफ़ क्या तेरी नज़र के दिल लूट लिया
नज़र मिलाकर मेरे पास आ के लूट लिया
नज़र हटी  थी के फिर मुस्कुरा कर लूट लिया
कोई ये लूट तो देखो के उसने जब चाहा
मुझ ही में रह कर मुझमें समा कर लूट लिया

ना लुटते हम अगर उन मस्त अंखियों ने जिगर
नज़र बचाते हुए डूब डूबा के लूट लिया

साथ अपना वफा में छूटे कभी
प्यार की डोर बन कर न टूटे कभी
छुट जाए ज़माना कोई गम नहीं
हाथ तेरा रहे बस मेरे हाथ में

रुत है बरसात की, देखो जिद मत करो
ये सुलगती शाम ये तन्हाईयाँ
बादलों के साथ हम भी रो दिए
जहाँ आँखें बरसती रहती हों बरसात से पहले
वहाँ बरसात में बादल बरस जाने से क्या होगा

ये भीगी रात और बरसात की हवाएं
जितना भुला रहा उतना याद आ रहे हैं
ये बादल झूम कर आये तो हैं शीन-ए-गुलिस्तान पर
कहीं पानी न पर जाए किसी के अहद-ओ-पैमां पर

लोग बरसात में सो जाते हैं खुश खुश लेकिन
मुझको इन आँखों की बरसात ने सोने न दिया
रुत है बरसात की देखो जिद न करो
रात अँधेरी है बादल हैं छाये हुए

रुक भी जाओ सनम तुम को मेरी कसम
अब कहाँ जाओगे ऐसी बरसात में
जिस तरह चाहे वो आजमा ले हमें
मुन्तजिर हैं बस उनके इशारे पे हम


मुस्कुरा कर 'फ़ना' वो तलब तो करें
जान भी अपनी दे देंगे सौगात में
आँख उठी मोहब्बत ने अंगडाई ली
दिल का सौदा हुआ चाँदनी रात में

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