राम करे कहीं नैना न उलझे
गीतकार - हसरत जयपुरी
राम करे कहीं नैना न उलझे
इन नैनन की रीत बुरी है
इन नैनों उलझाये न सुलझे
शब-ए-फ़िराक़ में यूँ दिल का दाग़ जलता है
मकान-ए- जैसे चराग़ जलता है
चश्म-ए-पुरनम है जिगर जलता है
क्या क़यामत है के बरसात में घर जलता है
क़रार छीन लिया बेक़रार छोड़ गये
बहार ले गये याद-ए-बहार छोड़ गये
हमारे चश्म-ए-हज़ीं को न कुछ ख़याल किया
वो उम्र भर के लिये अश्क़बार छोड़ गये'
अब के सावन घर आ जा
अब के सावन घर आ जा
बिदेशी सैंया हूँ अकेली
उडियो रे कगवा, ले जइयो संदेसवा
पिया के पास ले जा
तेरी सोनें चूँच मढ़ाउंगी
पंख के ऊपर लिखूंगी
गोरी तोरे नैना काजर बिन
गीतकार : कैफ़ी आज़मी
गोरी तोरे नैना काजर बिन कारे
छलके छलक तरसाये
समय बदल दे जब मिल जाए
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