गुलिस्तां - इकबाल बानो - उस्ताद सबरी खान




राम करे कहीं नैना न उलझे
गीतकार - हसरत जयपुरी 

राम करे कहीं नैना न उलझे

इन नैनन की रीत बुरी है
इन नैनों उलझाये न सुलझे

शब-ए-फ़िराक़ में यूँ दिल का दाग़ जलता है
मकान-ए- जैसे चराग़ जलता है

चश्म-ए-पुरनम है जिगर जलता है
क्या क़यामत है के बरसात में घर जलता है

क़रार छीन लिया बेक़रार छोड़ गये
बहार ले गये याद-ए-बहार छोड़ गये

हमारे चश्म-ए-हज़ीं को न कुछ ख़याल किया
वो उम्र भर के लिये अश्क़बार छोड़ गये'




अब के सावन घर आ जा 

अब के सावन घर आ जा
बिदेशी सैंया हूँ अकेली

उडियो रे कगवा, ले जइयो संदेसवा
पिया के पास ले जा

तेरी सोनें चूँच मढ़ाउंगी
पंख के ऊपर लिखूंगी


गोरी तोरे नैना काजर बिन 
गीतकार : कैफ़ी आज़मी 

गोरी तोरे नैना काजर बिन कारे
छलके छलक तरसाये
समय बदल दे जब मिल जाए

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