गुलज़ारियत भरे लम्हें - १



गुलज़ार...एक ऐसी शख़्सियत जिसके बारे में कुछ भी कहना जैसे किसी खुश्बू को बयान करना हो...जैसे धूप की गमक को नाम देना हो...जैसे हवा में बसी उस सकून भरी नमी को ज़ुबान देनी हो...। गुलज़ार साहब अपने में एक मुकम्मल शख़्सियत है...। उनके अन्दाज़े बयां को सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है, उस महसूसन को बयान करना किसी के बूते की बात नहीं...। जब भी वो कुछ कहते हैं...शब्द अपने अर्थ बदल देते हैं...। लफ़्ज़ उतने पुरसकून और हसीन कभी नहीं लगते, जितने उनकी नज़्मों-गीतों और कहानियों में ढल कर लगने लगते हैं...।
सूरज को दिया दिखाने की कोशिश है आज...उम्मीद है पसन्द आएगी...। आज से पूरे हफ्ते कलाम-ए-मोहब्बत पर सफ़र शुरू कर रही हूँ गुलज़ार साहब के चुने हुए नज्मों, कविताओं और गीतों की । आज पेश है आपके सामने, गुलज़ार साहब के ग्यारह नायाब और अनमोल गाने ।


सालगिरह मुबारक गुलज़ार साहब...।


आईये शुरुआत करते हैं मकबूल फिल्म के गाने से.

गाना : तू मेरे रु-ब-रु है
फिल्म : मकबूल
संगीतकार : विशाल भरद्वाज
गीतकार : गुलज़ार
गायक : दलेर मेहँदी 


तू मेरे रु-ब-रु है
मेरी आँखों की इबादत है
ये ज़मीं हैं मोहब्बत की
यहाँ मना है खता करना
सिर्फ सजदे में गिरना है
और अदब से दुआ करना

तू मेरे रु-ब-रु है
बस इतनी इजाज़त दे
क़दमों में जबीं रख दूँ
फिर सर ना उठे मेरा
ये जाँ भी वहीँ रख दूँ

एक बार तो दीदार दे
मेरे सामने रह के भी तू
ओझल है तू
पोशीदा है
मेरे हाल से ख्वाबीदा है

रु-ब-रु पिया
खू ब रु पिया





गाना : कभी चाँद की तरह टपकी
फिल्म : जहाँ तुम ले चलो
संगीतकार : विशाल भरद्वाज
गीतकार : गुलज़ार
गायक : हरिहरन  


कभी चाँद की तरह टपकी, कभी राह में पड़ी पाई
अट्ठन्नीसी ज़िंदगी, ये ज़िंदगी
कभी छींक की तरह खनकी, कभी जेब से निकल आई
अट्ठन्नीसी ज़िंदगी, ये ज़िंदगी

कभी चेहरे पे जड़ी देखी, कहीं मोड़ पे खड़ी देखी
शीशे के मरतबानों में, दुकान पे पड़ी देखी
चौकन्नी सी ज़िंदगी, ये ज़िंदगी   ...

तमगे लगाके मिलते है, मासूमियत सी खिलती है
कभी फूल हाथ में लेकर, शाख़ों पे बैठी हिलती है
अट्ठन्नीसी ज़िंदगी, ये ज़िंदगी   ...


 


गाना : ये फासले तेरी गलियों के हमसे
फिल्म : मम्मो
संगीतकार : वनराज भाटिया
गीतकार : गुलज़ार
गायक : जगजीत सिंह  


ये फ़ासले तेरी गलियों के हमसे तय न हुए
हज़ार बार रुके हम हज़ार बार चले

न जाने कौन सी मट्टी वतन की मट्टी थी
नज़र में धूल जिगर में लिये ग़ुबार चले

ये कैसी सरहदें उलझी हुई हैं पैरों में
हम अपने घर की तरफ़ उठ के बार बार चले

 


गाना : मदभरी ये हवाएं
फिल्म : अनोखा दान
संगीतकार : सलिल चौधरी
गीतकार : गुलज़ार
गायक : लता मंगेशकर  



मदभरी ये हवाएं पास आएं
नाम लेकर मुझको ये बुलाएं
मदभरी ये हवाएं

मैं ने रातों से कर ली दोस्ती तारों के लिये
और चुरा के लिया मैंने ये दिन बहारों के लिये
ऐ ज़मीं आसमां मुझको दो दुआएं
मदभरी ये हवाएं

मैंने लहरों की बाहें थाम कर ढूंढे हैं भंवर
साहिलों पे किसी अजनबी की तलाशी है डगर
काश ले कर उन्हें लहरें लौट आएं
मदभरी ये हवाएं


गाना : एक था बचपन
फिल्म : आशीर्वाद
संगीतकार : वसंत देसाई
गीतकार : गुलज़ार
गायक : लता मंगेशकर  


इक था बचपन, इक था बचपन
छोटा सा नन्हा सा बचपन, इक था बच्पन
बचपन के इक बाबूजी थे, अच्छे सच्चे बाबूजी थे
दोनों का सुंदर था बंधन, इक था बचपन

टेहनी पर चढ़के जब फूल बुलाते थे
हाथ उसके वो टेहनी तक ना जाते थे
बचपन के नन्हे दो हाथ उठाकर वो फूलों से हाथ मिलाते थे
इक था बचपन, इक था बचपन

चलते चलते, चलते चलते जाने कब इन राहों में
बाबूजी बस गये बचपन कि बाहों में
मुट्ठि में बन.द हैं वो सूखे फूल भी
खुशबू है जीने की चाहों में
इक था बचपन, इक था बचपन

होँठों पर उनकी अवाज़ भी है, मेरे होँठों पर उनकी अवाज़ भी
है
साँसों में सौँपा विश्वास भी है
जाने किस मोद पे कब मिल जायेंगे वो, पूछेंगे बचपन का एहसास भी
है
इक था बचपन, इक था बचपन...


गाना : दिन जा रहे हैं
फिल्म : दूसरी सीता
संगीतकार : राहुल देव बर्मन
गीतकार : गुलज़ार
गायक : लता मंगेशकर  


दिन जा रहे हैं के रातों के साये
अपनी सलीबें आप ही उठाये

जब कोई डूबा रातों का तारा
कोई सवेरा वापस ना आया
वापस जो आये वीरान साये

जीना तो कोई मुश्किल नहीं था
मगर डूबने को साहिल नहीं था
साहिल पे कोई अब तो बुलाये

साँसों की डोरी टूटे ना टूटे
जरा जिंदगी से दामन तो छूटे
कोई ज़िन्दगी के हाथ न आये


गाना : तू जहां मिले
फिल्म : दूसरी सीता
संगीतकार : राहुल देव बर्मन
गीतकार : गुलज़ार
गायक : आशा भोंसले  


तू जहां मिले मुझे वहीँ मेरे दोनों जहाँ
दोनों जहाँ वही मेरे मिले मुझे तू जहां
तू है तो सब है यहाँ रे
तू जहाँ मिले मुझे वही मेरे दोनों जहाँ

होता नहीं मगर हो जाए ऐसा
अगर तुही नज़र आये तू, जब भी उठे ये नज़र
होता नहीं मगर हो जाए ऐसा
अगर तुही नज़र आये तू, जब भी उठे ये नज़र
तू है तो सब है यहाँ रे
तू जहाँ मिले मुझे वही मेरे दोनों जहाँ
दोनों जहाँ वही मेरे मिले मुझे तू जहाँ

पलकों की छावं तले रहते हैं ये लोग
भले जब कोई होता नहीं आ मिल जाए गले
पलकों की छावं तले रहते हैं ये लोग
भले जब कोई होता नहीं आ मिल जाए गले
तू है तो सब है यहाँ रे
तू जहाँ मिले मुझे वही मेरे दोनों जहाँ
दोनों जहाँ वही मेरे मिले मुझे तू जहाँ


गाना : राह पे रहते हैं
फिल्म : नमकीन
संगीतकार : राहुल देव बर्मन
गीतकार : गुलज़ार
गायक : किशोर कुमार  


राह पे रहते है, यादों पे बसर करते हैं
खुश रहो एहले वतन  हम तो सफ़र करते हैं

जल गये जो धूंप में तो साया हो गये
आसमान का कोई कोना, ओढ़ा सो गये
जो गुजर जाती है बस उस पे गुजर करते है

उड़ते पैरों के तले जब बहती हैं ज़मीन
मूड के हम ने कोई मंज़िल देखी ही नही
रात दिन राहों पे हम शाम-ओ-सहर करते हैं

ऐसे उजड़े आशियाने तिनके उड़ गये
बस्तियों तक आते आते रस्ते मूड गये
हम ठहर जाये जहाँ उसको शहर करते है


गाना : बड़ी देर से मेघा
फिल्म : नमकीन
संगीतकार : राहुल देव बर्मन
गीतकार : गुलज़ार
गायक : किशोर कुमार 


बड़ी देर से
बड़ी देर से मेघा बरसा हो रामा
जली कितनी रतियाँ
बड़ी देर से मेघा बरसा

इस पहलू झुलसी तो उस पहलू सोई
सारी रात सुलगी मैं आया न कोई
हाँ
बैठी रही रख के हथेली पे दो अखियाँ
जली कितनी रतियाँ

बड़ी देर से मेघा बरसा हो रामा
जली कितनी रतियाँ
बड़ी देर से मेघा बरसा

थोड़ा सा तेज कभी थोड़ा सा हल्का
रोका ना जाये मुई अखियों का टपका
जागी रही ले के हथेली पे भीगी लड़ियाँ
जली कितनी रतियाँ

बड़ी देर से मेघा बरसा हो रामा
जली कितनी रतियाँ
बड़ी देर से मेघा बरसा


गाना : एक सुबह एक मोड़ पर मैंने कहा उसे रोक कर
फिल्म : हिप हिप हुर्रे
संगीतकार : वनराज भाटिया
गीतकार : गुलज़ार
गायक : येसुदास 


एक सुबह एक मोड़ पर मैं ने कहा उसे रोक कर
हाथ बढ़ा अए ज़िंदगी, आँख मिलाकर बात कर

रोज़ तेरे जीने के लिये
एक सुबह मुझे मिल जाती है
मुरझाती कोई शाम अगर तो
रात कोई खिल जाती है
मैं रोज़ सुबह तक आता हूँ
और रोज़ शुरू करत हूँ सफ़र
हाथ बढ़ा अए ज़िंदगी, आँख मिलाकर बात कर

तेरे हज़ारों चेहरों में
एक चेह्रा है मुझसे मिलता है
आँखों का रंग भी एक सा है
आवाज़ का अंग भी मिलता है
सच पूचो तो हम दो जुड़व हैं
तू शाम मेरी मैं तेरी सहर
हाथ बढ़ा अए ज़िंदगी, आँख मिलाकर बात कर


गाना : जब भी मुड़ के देखता हूँ  
फिल्म : हिप हिप हुर्रे
संगीतकार : वनराज भाटिया
गीतकार : गुलज़ार
गायक : भूपिंदर सिंह 


जब कभी मुड़के देखता हूँ मैं
तुम भी कुछ अजनबी सी लगती हो
मै भी कुछ अजनबी सा लगता हूँ

साथ ही साथ चलते चलते कहीं
हाथ छूटे मगर पता ही नहीं
आँसुओं से भरी सी आँखों में
डूबी डूबी हुई सी लगती हो
तुम बहुत अजनबी सी लगती हो
जब कभी मुड़के देखता हूँ मैं

हम जहाँ थे वहाँ पे अब तो नहीं
पास रहने का भी सबब तो नहीं
कोइ नाराज़गी नहीं है मगर
फिर भी रूठी हुई सी लगती हो
तुम भी अब अजनबी सी लगती हो
जब कभी मुड़के देखता हूँ मैं

रात उदास नज़्म लगती है
ज़िंदगी से रस्म लगती है
एक बीते हुए से रिश्ते की
एक बीती घड़ी से लगते हो
तुम भी अब अजनबी से लगते हो
जब कभी मुड़के देखता हूँ मैं



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