आरज़ू लखनवी की पाँच छोटी ग़ज़लें


दिल का जिस शख़्स के पता पाया
उसको आफ़त में मुब्तला पाया

नफ़ा अपना हो कुच तो दो नुक़सान
मुझको दुनिया से खो के क्या पाया

बेकसी में भी गुज़र ही जाएगी
दिल को मैं और दिल मुझे समझा गया

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मुझ ग़मज़दा के पास से सब रो के उठे हैं
हाँ आप इक ऐसे हैं कि ख़ूश होके उठे हैं

मुँह उठके तो सब धोते हैं ऐ दीदये-खूंबाज़
बिस्तर से हम उठे हैं तो मुँह धोके उठे हैं

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तुम हो कि एक तर्ज़े-सितम पर नहीं क़रार
हम हैं कि पायेबन्द हरेक इम्तहाँ के हैं

हों सर्फ़ तीलियों में क़फ़स के तो ख़ौफ़ है
तिनके जो मेरे उजड़े हुए आशियाँ के हैं

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रहते न तुम अलग-थलग हम न गुज़रते आप से
चुपके से कहनेवाली बात कहनी पड़ी पुकार के

पूछी थी छेड़कर जो बात, कहने न दी वो बात भी
तुमने खटकती फ़ाँस को छोड़ दिया उभार के

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जो मेरी सरगुज़िश्त सुनते हैं
सर को दो-दो पहर यह धुनते हैं

कै़द में माजरा-ए-तनहाई
आप कहते हैं, आप सुनते हैं
झूठे वादों का भी यकीन आ जाये
कुछ वो इन तेवरों से कहते हैं

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